हेल्थ डेस्क. राजधानी दिल्ली सहित देश के कई हिस्से वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी, इस समस्या में और भी इजाफा होता जाएगा और धुएं के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ती जाएंगी। आमतौर पर धारणा है कि वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर फेफड़ों की सेहत पर पड़ता है और अस्थमा के मरीजों को अधिक दिक्कत होती है। लेकिन नए शोध और अध्ययन कहते हैं कि वायु प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने से स्ट्रोक की आशंका भी बढ़ जाती है। सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रवर पासी से जानिएवायु प्रदूषण कैसेस्ट्रोक के खतरे को बढ़ाता है…
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स्वीडन के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंटल मेडिसिन (कैरोलिंस्का) की टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वाहनों और औद्योगिक धुएं के कारण स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। खासकर उन क्षेत्रों में इसके मरीज ज्यादा पाए गए, जो लगातार धुएं के संपर्क में रहे। अध्ययन के अनुसार यह धुआं उसी तरह से प्रतिक्रिया करता है, जैसा कि सिगरेट का धुआं करता है। दोनों ही प्रकार का धुआं मस्तिष्क की अंदरूनी परतों (इनर लाइनिंग) को नुकसान पहुंचाकर स्ट्रोक के हालात पैदा करता है। इसी तरह का एक अन्य अध्ययन कुछ अरसे पहले ‘द लेन्सेट न्यूरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन के अनुसार स्ट्रोक के एक तिहाई मामलों में वायु प्रदूषण एक बड़ी वजह बना है। इसमें औद्योगिक व वाहनों से होने वाला प्रदूषण और घरेलू प्रदूषण (देसी चूल्हा) दोनों शामिल है। इस अध्ययन में दुनिया के 188 देशों में स्ट्रोक के 17 रिस्क फैक्टर्स को शामिल किया गया था।
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वायु प्रदूषण स्ट्रोक का एक कारक (फैक्टर) है, लेकिन इसके तीन सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं – शुगर, बीपी और अधिक वजन होना। जिन लोगों को पहले से दिल की कोई बीमारी है, उन्हें स्ट्रोक होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति को रोजाना खर्राटे आते हैं, तो उसे भी सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि खर्राटे भी स्ट्रोक का अपने आप में एक बड़ा रिस्क फैक्टर है। जिन लोगों के परिवार में पहले किसी को स्ट्रोक हो चुका है, उन्हें भी स्ट्रोक होने की आशंका अधिक होती है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में स्ट्रोक के मामले ज्यादा होते हैं।
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यह तब होता है, जब मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है या फिर मस्तिष्क में रक्त धमनियां फूट जाती हैं। इससे मस्तिष्क तक ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती जिससे वहां की कोशिकाओं (ब्रेन सेल्स) को गंभीर क्षति पहुंचती है। हालांकि स्ट्रोक का पूर्व अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन अगर किसी को स्ट्रोक हुआ है, तो इसके शुरुआती संकेत मिल जाते हैं। इन संकेतों में सिर में तेज दर्द होना, चक्कर आना, धुंधला नजर आना, चलने या बोलने में दिक्कत महसूस होना, शरीर के एक हिस्से में सुन्नता महसूस होना आदि शामिल हैं। अगर इनमें से कोई एक या सभी संकेत नजर आए तो तुरंत किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए, ताकि स्थिति को और ज्यादा गंभीर होने से बचाया जा सके। देर होने पर पीड़ित व्यक्ति को लकवा हो सकता है या फिर बोलने या सुनने में हमेशा के लिए अपंगता हो सकती है। ज्यादा गंभीर होने पर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
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कुछ लोगों को टीआईए यानी ‘ट्रांजिएंट इस्किमिक अटैक’ आता है जिसे बोलचाल की भाषा में मिनी स्ट्रोक कहते हैं। यह कुछ ही मिनटों या सेकंडों के लिए आता है। यह तब होता है, जब मस्तिष्क के किसी एक हिस्से में रक्त की आपूर्ति बहुत ही कम समय के लिए रुक जाती है। इसके भी संकेत स्ट्रोक जैसे ही होते हैं, लेकिन अपेक्षाकृत कम अवधि के और अस्थाई होते हैं। जैसे शरीर का कोई एक हिस्सा सुन्न हो जाना, चेहरे या शरीर के किसी एक हिस्से में अस्थाई तौर पर लकवा मार जाना, किसी एक आंख या दोनों आंखों से देखने में दिक्कत होना, शरीर का संतुलन बनाने में परेशानी होना आदि। ये दिक्कतें आकर चली भी जाती हैं, लेकिन भावी बड़े स्ट्रोक के संकेत दे जाती हैं। ऐसे में इन संकेतों को टालने के बजाय तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।
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स्ट्रोक की उन वजहों जैसे फैमिली हिस्ट्री या बढ़ती उम्र या जेंडर (महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा आशंका होती है) को बदलना किसी के हाथ में नहीं है। इन्हें ‘नॉनमोडिफिएबल फैक्टर’ (यानी वे कारक जिन्हें बदला नहीं जा सकता) कहते हैं। लेकिन स्ट्रोक के अन्य कारकों को नियंत्रित करना हमारे हाथ में हैं, जिन्हें ‘मॉडिफिएबल फैक्टर्स’ कहा जाता है। तो आइए जानते हैं कि हम कैसे स्ट्रोक की आशंका को कम कर सकते हैं :
- अगर आप अधिक वायु प्रदूषण वाले शहर में रहते हैं तो वायु प्रदूषण से बचने की हरसंभव कोशिश कीजिए। बिजी ट्रैफिक ऑवर में निकलने से बचिए। हमेशा मास्क का इस्तेमाल कीजिए।
- अगर आपको ब्लड प्रेशर या डायबिटीज (अथवा दोनों) है तो इन्हें डाइट और व्यायाम से नियंत्रित रखिए। कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी नियंत्रण में रखना जरूरी है क्योंकि रक्त धमनियों में अवरोध की वजह कोलेस्ट्रॉल ही होता है।
- अधिक से अधिक मात्रा में फल और हरी सब्जियों का सेवन करें। भोजन के साथ सलाद भी हमेशा खाएं, ताकि आपका वजन नियंत्रण में रहें। वजन को बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) के अनुसार रखें।
- धूम्रपान पूरी तरह से छोड़ दीजिए। शराब के सेवन को भी सीमित करें या न करें तो बेहतर रहेगा।
- अपने रोज के भोजन में नमक की मात्रा को कम करें। सैचुरेचेड फैट और ट्रांसफैट को भी सीमित करें। जब भी मौका मिले, पैदल ही चलें। रोजाना सुबह की सैर पर जाएं और सप्ताह में कम से कम पांच दिन 30-30 मिनट की कसरत करें।
- महिलाएं कुछ दवाओं जैसे पीरियड्स को आगे खिसकाने वाली टैबलेट्स का इस्तेमाल नहीं करें।
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Source: Health