हेल्थ डेस्क. भूटान… भारत के तीन सुंदर राज्यों सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और असम की सीमाओं को हौले से छूता हुआ एक हिमालयीन देश। प्राकृतिक रूप से उतना ही सोणा, जितने ये तीन राज्य। भूटान की सुंदरता, अध्यात्म, यहां की शांति, सबकुछ कल्पनातीत। यहां परंपराओं और संस्कृति की जड़ें अब भी इतनी गहरी हैं कि पड़ोसी चीन के तमाम प्रयासों के बावजूद यह अपने सांस्कृतिक अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहा है। भूटानीज अपने देश को गर्व के साथ ‘ड्रूक यूल’ कहते हैं जिसका अर्थ है “गरजते हुए ड्रैगन की भूमि’। लेकिन यह ड्रैगन भयावह नहीं है, डराता नहीं है। बल्कि संरक्षक है, देश को बुरी निगाहों से बचाने वाला ड्रैगन। फूड हिस्टोरियन, लेखक और टीवी होस्ट आशीष चोपड़ा से जानिए भूटान के व्यंजनों के बारे में…
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भूटान के बारे में कहने को बहुत कुछ है। लेकिन हम तो निकले हैं यहां की खान-पान की संस्कृति की पड़ताल करने। तो बात केवल खाने की करेंगे। जैसा कि हमने बताया कि यह देश अध्यात्म का गढ़ है.. यहां कदम-कदम पर शांति और सरलता है। तो यहां के खाने में भी उतनी ही सरलता है। मसालेदार भोजन होने के बावजूद उसमें एक शांति महसूस होती है। मैं भूटान एक दर्जन से भी अधिक बार जा चुका हूं और यहां मुझे हर बार खान-पान में कुछ न कुछ नया महसूस होता है। हर बार लगता है कि खान-पान की खोज में कुछ छूट गया है, वैसे ही जैसे अध्यात्म की खोज कभी पूर्ण नहीं होती। हर बार यहां के लोगों का सत्कार और उनकी आत्मीयता मन मोह लेती है।
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अहम स्थान है, लेकिन हमें मिर्च को भी नहीं भूलना चाहिए। भूटानीज भले ही सीधे-सादे और सज्जन हों, लेकिन खाने में तीखेपन को लेकर कोई समझौता नहीं कर सकते। मिर्च के दीवाने। यहां के किचन में मिर्च का बोलबाला होता है। कोई भी डिश तेज मिर्च के बिना संभव ही नहीं है। ‘एम्मा दत्शी’ भूटान की नेशनल डिश है। इसका मुख्य तत्व यानी इंग्रेडिएंट है हरी मिर्च और याक चीज़। यह भूटान का वैसा ही मुख्य भोजन है, जैसे उत्तर भारतीयों का दाल-रोटी तो दक्षिण भारतीयों और पूरबवासियों का चावल। ड्राइड पोर्क यहां का अन्य प्रमुख भोजन है। भूटान में पोर्क का इस्तेमाल कई डिशेज में होता है जैसे पोर्क फिंग, फक्षा पा, केवफगाशा आदि। हालांकि याक के मांस की तो बात ही कुछ अलग है जिसका उल्लेख इसी कॉलम में आगे करेंगे।
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भूटान में ज्यादातर चावल ही पैदा होता है। इसलिए भूटानियों के खाने में चावल का खूब इस्तेमाल होता है, नाश्ता, लंच से लेकर डिनर तक, चावल ही चावल। यहां चावल के आधार पर इसके खाने वालों की दो श्रेणियां बनी हुई हैं। शहरी क्षेत्रों जैसे थिम्पू, पारो में व्हाइट राइस ज्यादा खाते हैं। भूटान के ग्रामीण अंचलों में रेड राइस। मजेदार बात यह है कि रेड राइस ज्यादा पौष्टिक होता है, क्योंकि यह रिफाइंड नहीं होता। पकने में भी यह कम वक्त लगाता है। बस थोड़ा चिपचिपा होता है और इसीलिए शायद शहरी लोग इसे कम पसंद करते होंगे। चावल से बनी डिशेज की कोई कमी नहीं है। इनमें भी कम से कम दो का उल्लेख किया जा सकता है। एक, “देसी’ और दूसरी “जोऊ’। देसी में व्हाइट राइस, बटर, शक्कर, केसर और सुनहरे किशमिश का इस्तेमाल किया जाता है।
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जोऊ एक तरह का फ्राइड राइस होता है। यहां के पूर्व राजा जिग्मेसिंग्ये वांगचुक को दोनों ही डिश काफी पसंद है। ‘पूटा’ जो व्हाइट नूडल्स होते हैं, पूर्वी भूटानियों का प्रमुख भोजन है, तो ‘खारांग’ दक्षिण भूटान के लोगों का। खारांग को मक्के से बनाया जाता है। यह कुछ-कुछ मक्के के दलिया जैसा होता है, स्वादिष्ट और पौष्टिक दोनों। भूटानियों के लिए याक सबसे कीमती है। यहां याक के दूध का ही इस्तेमाल किया जाता है। याक चीज भी बहुत खाया जाता है। मांसाहारियों के बीच याक का मांस प्रचलित है। गर्मियों में लोग याक के मांस को तेज धूप में सुखाकर स्टोर करके रख लेते हैं और फिर ठंड के दिनों में इस्तेमाल करते हैं। याक के मांस से बनाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय डिश है ‘पा’। यह एक तरह की करी है। इसमें ढेर सारी सब्जियों और मांस को काफी देर तक पकाया जाता है। इसमें काफी मिर्च भी डाली जाती है। मांसाहारियों के लिए इसी तरह की एक और डिश है “जासोन’ जिसे याक के मांस की जगह चिकन डालकर बनाया जाता है।
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Source: Health