सेहतनामा- अर्जुन कपूर को ऑटोइम्यून डिजीज हाशिमोटो:डॉक्टर से जानिए क्या है ये बीमारी और इलाज, किसे ज्यादा रिस्क
By : Devadmin -
एक्टर अर्जुन कपूर ने हाल ही में अपनी बीमारी हाशिमोटो (Hashimoto) के बारे में बात की है। उन्होंने बताया है कि कैसे बतौर एक्टर यह बीमारी जिंदगी और करियर के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। असल में एक्टिंग प्रोफेशन की ये डिमांड है कि आपको हरदम फिट और दुरुस्त रहना होता है। जबकि ऑटोइम्यून डिजीज हाशिमोटो के कारण हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या हो जाती है। इसके कारण तेजी से वजन बढ़ता है। ऐसे में फिटनेस बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हाशिमोटो एक क्रॉनिक ऑटोइम्यून डिजीज है, जो थायरॉइड ग्लैंड को प्रभावित करती है। इसके कारण थायरॉइड हॉर्मोन शरीर की जरूरत से कम बनने लगता है। इसके कारण शरीर के कई हिस्से प्रभावित होते हैं। नतीजतन थकान, वेट गेन और कब्ज जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। हाशिमोटो के लक्षण दवाओं की मदद से कंट्रोल किए जा सकते हैं। रिसर्च गेट में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पूरी दुनिया में 7.5% लोग ऑटोइम्यून डिजीज हाशिमोटो का सामना कर रहे हैं। भारत में लगभग 11% लोग इस बीमारी का सामना कर रहे हैं। इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में ऑटोइम्यून डिजीज हाशिमोटो की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- हाशिमोटो क्या है? यह एक ऑटोइम्यून कंडीशन है, जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम शरीर की हेल्दी सेल्स पर हमला कर देता है। यह बीमारी सबसे अधिक थायरॉइड ग्लैंड को प्रभावित करती है। थायरॉइड ग्लैंड शरीर के कई फंक्शन के लिए जिम्मेदार है। इसके कारण हमारा मेटाबॉलिज्म, ब्रेन, हार्ट और ब्लड प्रेशर प्रभावित होता है और बॉडी वेट भी बढ़ सकता है। कुल मिलाकर इससे ऐसी कंडीशंस बन सकती है, जिससे कई अन्य बीमारियों का भी जोखिम बढ़ सकता है। डॉ. अभिनव गुप्ता कहते हैं कि भारत में अगर किसी को हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या है तो डॉक्टर इसकी वजह का पता लगाने की बजाय थायरॉइड का ही ट्रीटमेंट करने लगते हैं। जबकि कई मामलों में हाशिमोटो डिजीज भी इसका कारण हो सकती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में समंदर के आसपास रहने वाले लोगों के मुकाबले दूसरे जमीनी क्षेत्रों में रहने वालों में हाशिमोटो का जोखिम अधिक होता है। अगर थायरॉइड की समस्या के साथ इस बीमारी के लक्षण नजर आ रहे हैं तो आप डॉक्टर से हाशिमोटो की जांच के लिए बात कर सकते हैं। क्या हाशिमोटो और हाइपोथायरॉइडिज्म एक ही हैं? नहीं, दोनों अलग कंडीशंस हैं। हाइपोथायरॉइडिज्म में भी थायरॉइड ग्लैंड थायरॉइड हॉर्मोन का प्रोडक्शन कम कर देती है, लेकिन यह ऑटोइम्यून कंडीशन नहीं है। जबकि हाशिमोटो ऑटोइम्यून बीमारी होने के कारण ज्यादा गंभीर है। हाशिमोटो की वजह से हाइपोथायरॉइडिज्म भी हो सकता है, लेकिन कई बार इस वजह के बिना भी हाइपोथायरॉइडिज्म की कंडीशन हो सकती है। हाशिमोटो के लक्षण क्या हैं? हाशिमोटो डिजीज होने पर शुरुआती दिनों में कुछ लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। यह कंडीशन जैसे-जैसे गंभीर होती है, कई लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। कई बार तो थायरॉइड ग्लैंड बड़ी होने लगती है। इस कंडीशन को गोइटर (गंडमाला) कहा जाता है। आमतौर पर हाशिमोटो डिजीज का पहला लक्षण गोइटर ही होता है। इसमें आमतौर पर दर्द नहीं होता है। इसके कारण गर्दन के निचले हिस्से में सूजन जैसा एहसास हो सकता है। इसके कारण कब्ज की समस्या हो सकती है। सुस्ती बढ़ जाती है और बहुत अधिक नींद आने लगती है। इसके और क्या लक्षण होते हैं, ग्राफिक में देखिए: हाशिमोटो डिजीज क्यों होती है? यह एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसका अर्थ है कि शरीर का इम्यून सिस्टम अपने शरीर की ही हेल्दी सेल्स और ऑर्गन्स पर हमलावर हो गया है। इस बीमारी में एंटीबॉडीज थायरॉइड ग्लैंड पर हमला कर देती हैं। अभी तक हुई स्टडीज में इस बात का पता नहीं लगाया जा सका है कि एंटीबॉडीज थायरॉइड पर क्यों हमला करती हैं, लेकिन कुछ डॉक्टर और वैज्ञानिक मानते हैं कि यह जेनेटिक कारणों से हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति किसी ऑटोइम्यून डिजीज से गुजर रहा है तो हाशिमोटो डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है। ग्राफिक में देखिए: हाशिमोटो के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं? डॉ. अभिनव गुप्ता कहते हैं कि हाशिमोटो डिजीज में फैमिली हिस्ट्री बड़ा कारक है। इसके अलावा महिलाओं को इस डिजीज का जोखिम पुरुषों की अपेक्षा कई गुना अधिक होता है। उम्र बढ़ने के साथ इसका जोखिम बढ़ सकता है, विस्तार से समझिए: फैमिली हिस्ट्री बड़ी वजह: नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जेनेटिक कारणों से हाशिमोटो विकसित होने की संभावना लगभग 80% अधिक हो जाती है। अगर किसी व्यक्ति की बायोलॉजिकल फैमिली के किसी सदस्य को हाशिमोटो डिजीज या थायरॉइड की समस्या है तो उसे इस बीमारी का जोखिम ज्यादा होता है। महिलाओं को अधिक जोखिम: महिलाओं को हाशिमोटो डिजीज होने की संभावना पुरुषों की अपेक्षा 10 गुना अधिक होती है। डॉ. अभिनव गुप्ता कहते हैं कि ऐसा सेक्स हॉर्मोन के कारण हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता जोखिम: उम्र बढ़ने के साथ हाशिमोटो और थायरॉइड विकसित होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। हाशिमोटो का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? हाशिमोटो का सबसे अधिक असर थायरॉइड और मेटाबॉलिज्म पर पड़ता है। इसके कारण पाचन संबंधी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। इसलिए इसमें पेशेंट को लाइफ लॉन्ग ट्रीटमेंट के साथ देखभाल की भी जरूरत होती है। अगर किसी व्यक्ति को हाशिमोटो डिजीज है और वह समय पर ट्रीटमेंट नहीं लेता है तो इसके कारण कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। ग्राफिक में देखिए: हाशिमोटो का इलाज क्या है? हाशिमोटो डिजीज में अधिकांश लोगों को ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। अगर बीमारी शुरुआती स्टेज में है और थायरॉइड सामान्य रूप से काम कर रहा है तो डॉक्टर बिना किसी ट्रीटमेंट के पेशेंट को निगरानी में रख सकते हैं। अगर थायरॉइड पर्याप्त मात्रा में हॉर्मोन का उत्पादन नहीं कर रहा है तो इसके लिए दवा की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर एक सिंथेटिक हॉर्मोन लेवोथायरोक्सिन (Levothyroxine) देते हैं। कई बार इसके कुछ साइड इफेक्ट भी सामने आ सकते हैं। लेवोथायरोक्सिन के कारण ये साइड इफेक्ट दिखें तो डॉक्टर से कंसल्ट करें: ……………………..
सेहत की ये खबर भी पढ़िए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनिया में लगभग 5 करोड़ लोग मिर्गी से जूझ रहे हैं। भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी का सामना कर रहे हैं। इसका मतलब है कि पूरी दुनिया के 20% मिर्गी के मरीज सिर्फ भारत में हैं। पूरी खबर पढ़िए…
Source: Health