सेहतनामा- गहरी थकान के बाद भी क्यों नहीं आती नींद:क्या बॉडी का सर्केडियन रिद्म बिगड़ गया है, कॉफी, मोबाइल और स्ट्रेस भी है कारण

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आंखों में पानी के कितने ही छींटे मार लीजिए, कितनी भी चाय-कॉफी पी लीजिए, लेकिन आंखें खुली रख पाना मुश्किल हो जाता है। दर्द और थकान से शरीर टूट रहा होता है। ऑफिस, स्कूल या कॉलेज जहां कहीं भी हैं, आप किसी तरह काम खत्म करके बिस्तर पर जाते हैं और वहां लेटने पर भी घंटों तक नींद नहीं आती। ऐसे में कितना गुस्सा आता होगा कि आखिर हो क्या रहा है? थकान भी है, आंखों में नींद भी है, लेकिन आप सो नहीं पा रहे। गहरी थकान के बाद भी अगर आप सो नहीं पा रहे हैं तो इसका मतलब है कि आपकी बॉडी का सर्केडियन रिद्म बिगड़ गया है। सर्केडियन रिद्म का मतलब हमारी बॉडी की नेचुरल क्लॉक से है, जिसकी मदद से हमारा शरीर यह तय करता है कि उसे कब सोना और जागना है। ये क्लॉक यह भी याद दिलाती है कि किस समय कौन सा काम करना है। यह सब दिन में ज्यादा सोने, किसी एंग्जायटी डिसऑर्डर, स्लीप डिसऑर्डर या अन्य फैक्टर्स के कारण भी हो सकता है। कारण कोई भी हो, लेकिन यह स्थिति अगर लंबे समय तक बनी रहे तो यह सेहत के लिए खतरनाक है। इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में समझेंगे कि थके होने पर भी नींद क्यों नहीं आती है। साथ ही जानेंगे कि- दिन-रात की तरह जरूरी है जागना और सोना हर 24 घंटे के साइकल में दिन और रात का सतत क्रम जारी रहता है। ठीक इसी तरह हर इंसान और जीव-जंतु के सोने और जागने का क्रम भी चलता रहता है। कोई शख्स दिन में पूरी मुस्तैदी और ऊर्जा के साथ काम तभी कर पाएगा, जब उसे रात में भरपूर नींद मिले। इसे डॉ. मैथ्यू वॉकर अपनी किताब में बहुत खूबसूरत शब्दों में कुछ ऐसे समझाते हैं– सर्केडियन रिद्म है शरीर का सेल्फ अलार्म क्लॉक
सर्केडियन रिद्म इंसानों के इंटरनल टाइमकीपर की तरह है। हम 24 घंटे के पीरियड में जो चीजें या काम रोज करते हैं, हर उस चीज का रिकॉर्ड हमारी नेचुरल क्लॉक के पास रहता है। यह क्लॉक हमें रोज सेल्फ अलार्म की तरह जरूरी कामों के लिए इंडिकेट करती रहती है। शरीर की मास्टर क्लॉक को सुप्रशिएस्मेटिक न्यूक्लियस (SCN) कहा जाता है। यह मस्तिष्क में होता है, जो मेलाटोनिन प्रोडक्शन को नियंत्रित करता है। मेलाटोनिन वह हॉर्मोन है, जो नींद के लिए जिम्मेदार है। जब मेलाटोनिन रिलीज होता है, तभी हमें नींद आती है। जब दिन में सूरज की रौशनी होती है तो मेलाटोनिन का स्तर कम रहता है। दिन ढलने के बाद जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता है, शरीर में मेलाटोनिन का उत्पादन बढ़ने लगता है। यह लगातार जारी रहता है और लगभग सुबह 4 बजे के बाद इसका उत्पादन कम होने लगता है। इस हॉर्मोन से ही हमें नींद का एहसास होता है। जब हमारे शरीर में मेलाटोनिन का स्तर बढ़ने लग जाए तो उसके लगभग 2 घंटे बाद हमारा शरीर सो जाना पसंद करता है। अगर कोई शख्स इसके बाद भी देर रात तक जाग रहा है तो इसका मतलब है कि उसकी बॉडी क्लॉक ठीक से काम नहीं कर रही है। देर रात तक जागने से बिगड़ता है सर्केडियन रिद्म
अगर किसी शख्स के सोने और जागने का शेड्यूल सामान्य से अलग है, लेकिन वह स्वस्थ और सही महसूस कर रहा है तो कोई समस्या की बात नहीं है। अगर कोई बहुत थका होने के बाद भी सो नहीं पा रहा है तो समस्या की बात है। इसका मतलब है कि उसका सर्केडियन रिद्म बिगड़ा हुआ है। यह डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम (DSPS) का संकेत हो सकता है। ऐसा तब होता है, जब कोई सोने के सामान्य समय (रात 10 बजे से 12 बजे के बीच) की तुलना में 2 या अधिक घंटे देर से सोता है। इसके कारण सुबह समय पर उठने में समस्या होती है। DSPS आमतौर पर युवाओं को अधिक प्रभावित करता है। थकान, नींद और ऊर्जा न होने में फर्क है
डॉ. प्रवीण गुप्ता के मुताबिक, थकान, नींद और ऊर्जा न होना, तीनों अलग स्थितियां हैं। थकान के बावजूद नींद न आने के कई कारण
​​​​​​​अगर कोई शख्स बहुत थका हुआ है और सूरज डूबने के बाद भी सो नहीं पा रहा है तो यह डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम का संकेत हो सकता है। अगर ऐसा नहीं है तो इसके पीछे कोई अन्य वजह या कई अन्य फैक्टर्स हो सकते हैं। ग्राफिक में देखिए। अब ग्राफिक में दिए पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं। नैप लेने से उड़ सकती है रात की नींद एंग्जायटी से नींद खराब होती है डिप्रेशन के कारण हो सकती है नींद की समस्या कैफीन से प्रभावित होती है नींद फोन की स्क्रीन उड़ा रही है नींद स्लीप डिसऑर्डर के कारण हो सकती है समस्या
Source: Health

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