सेहतनामा- मोबाइल स्क्रीन से बच्चों को ड्राई आईज की समस्या:स्क्रीन से छोटे बच्चों की सेहत को ज्यादा खतरा, लिमिट तय करना जरूरी

यह सोशल मीडिया ट्रेंड्स और मीम्स का जमाना है। यहां हर छोटी-बड़ी बात अगर रिलेवेंट है तो इंटरनेट पर वायरल हो जाती है। एक मीम अक्सर वायरल होता है, जिसमें किसी बच्चे का सिर दर्द कर रहा है या पैर दर्द कर रहे हैं या फिर उसे बुखार आ गया है। इन सभी समस्याओं पर पेरेंट्स एक ही ताना देते हैं कि और चला लो फोन। मीम में सवाल होता है कि इन सभी बातों का भला फोन से क्या कनेक्शन है, लोग ठहाके लगाते हैं। लेकिन अब साइंस स्टडी कह रही हैं कि कनेक्शन तो है। पेरेंट्स का कहना बिलकुल सही है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकिएट्री के मुताबिक, बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम आने वाले समय में बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकता है। इससे कई बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इंडियन जर्नल ऑफ ऑफथेल्मोलॉजी में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, ज्यादा स्क्रीन देखने के कारण बच्चों में ड्राई आंखों की समस्या बढ़ रही है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था, “बच्चों का गेम एडिक्शन आने वाले समय में ड्रग्स और मादक पदार्थों की लत की तरह ही साबित होगा। इससे मानसिक और शारीरिक सेहत को कई नुकसान हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि इस पर कोई कानून लाया जाए।” कुल मिलाकर ज्यादातर इशारे इसी ओर हैं कि बच्चों के लिए स्क्रीन और मोबाइल का इस्तेमाल अच्छा नहीं है। अगर इससे उनकी पढ़ाई का कुछ लेना-देना है तो इसकी लिमिट तय करना और उन्हें इसके हेल्दी यूज और एक्टिविटीज के बारे में बताना जरूरी है। इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में जानेंगे कि बच्चों पर स्क्रीन का क्या असर होता है। साथ ही समझेंगे कि- आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि तकनीकी विकास ने हमारे जीवन को आसान बनाने के साथ क्या समस्याएं पैदा की हैं। इस बारे में प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट और साइकिएट्रिस्ट एडम गेजेली ने एक किताब लिखी है। (डॉ. गजेली ने इस पर एक किताब भी लिखी है- ‘द डिस्ट्रैक्टेड माइंड: एन्शिएंट ब्रेन्स इन ए हाई टेक वर्ल्ड’) स्क्रीन टाइम से बढ़ रही हैं मुश्किलें कोरोना महामारी के बाद जैसे-जैसे प्रतिबंध कम होने शुरू हुए, सारी गतिविधियां अपने पुराने रंग में लौटने लगीं। इसी बीच सबको एहसास हुआ कि उनका स्क्रीन टाइम काफी बढ़ गया है। चूंकि बच्चे इस दौरान अपनी पढ़ाई के लिए भी स्क्रीन के भरोसे थे तो उनके लिए यह समस्या और भी बड़ी हो गई। पढ़ाई के अलावा भी उनका लंबा समय स्क्रीन के साथ बीतने लगा, जो अभी तक जारी है। अब इसके नुकसान सामने आने शुरू हो गए हैं। नीचे ग्राफिक में देखिए। घट रहा है अटेंशन स्पैन स्क्रीन के साथ ज्यादा समय बिताने का नतीजा ये है कि अब सबका अटेंशन स्पैन कम हो रहा है। फोकस घट रहा है। दिमाग किसी एक चीज पर ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता। हमारे ब्रेन डेवेलपमेंट के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम बिना भटके किसी काम में लगातार कितनी देर तक अपना ध्यान लगाए रख सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन की एक स्टडी के मुताबिक इंसानों का औसत अटेंशन स्पैन तेजी से नीचे गिरा है। यह बीते 20 सालों में 2.5 मिनट से घटकर 47 सेकेंड पर पहुंच गया है। बीते कुछ समय में बच्चों और किशोरों का स्क्रीन टाइम अधिक बढ़ा है तो इसका असर भी उनमें अधिक देखने को मिला है। अटेंशन स्पैन घटने से उनकी स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, पारिवारिक संबंध और फिजिकल फिटनेस पर बुरा असर पड़ा है। बच्चों के लिए एवरेज स्क्रीन टाइम क्या है विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकिएट्री ने बच्चों के लिए स्क्रीन के इस्तेमाल की टाइमलाइन जारी की है। दुनिया के ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों के लिए यही टाइमलाइन रिकमेंड करते हैं। बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए क्या करें अगर बच्चे का स्क्रीन टाइम ज्यादा है तो एक ही दिन में ऐसा नहीं होगा कि वह फोन चलाना बंद कर देगा। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने बच्चे से इस बारे में बात करें कि उसे सोशल मीडिया और ऑनलाइन दुनिया को किस तरह बरतना चाहिए। उसके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। छोटे बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए यह कुछ नियम और दिशा-निर्देश उपयोगी हो सकते हैं:
Source: Health

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