हेल्थ डेस्क. एलर्जी कोई ऐसी बीमारी नहीं होती जो जीवन के लिए खतरा हो, लेकिन इसका उपचार नहीं है। तो फिर मरीज़ को दवाएं क्यों दी जाती हैं? और इसको काबू में कैसे कर सकते हैं? डॉक्टर और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल से जानिए एलर्जी पर जरूरी बातें…
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क्या कभी आपने महसूस किया है कि कुछ लोगों को बार-बार ही सर्दी होती रहती है या फिर त्वचा पर चकत्ते हो जाते हैं। कई बार होठों पर सूजन हो जाती है। या कुछ विशेष खाद्य पदार्थ जैसे अंडे या मूंगफली या कुछ और भी खाने पर पेट खराब हो जाता है। दरअसल, यह सब एलर्जी के ही प्रकार हैं। आम लोग एलर्जी को सिर्फ त्वचा और नाक की एलर्जी मानकर चलते हैं, जबकि खाने-पीने, मौसम या माहौल बदलने पर भी किसी-किसी को एलर्जी हो सकती है।
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किसी चीज अथवा परिस्थिति के प्रति जब हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली (इम्युनिटी सिस्टम) प्रतिक्रिया देने लगती है और संवेदनशील हो जाती है, तो इस अवस्था को ही एलर्जी कहा जाता है। इसमें शरीर किसी भी तरह से प्रतिक्रिया कर सकता है। जैसे किसी को सामान्य से डियोड्रेंट की गंध से भी तेज सिरदर्द हो सकता है। सामान्य एलर्जी पैदा करने वाले कणों को ‘एलर्जन’ कहा जाता है। इन चीजों के संपर्क में आने पर कुछ लोगों को एलर्जी हो जाती है, जबकि कुछ लोग सामान्य रहते हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में 25 फीसदी लोग किसी न किसी तरह की एलर्जी और इससे जुड़ी हुई बीमारियों से ग्रसित हैं।
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स्किन प्रिक टेस्ट से काफी हद तक एलर्जी का पता चल जाता है। डॉक्टर इससे कम से कम 40 अलग-अलग चीजों से होने वाली एलर्जी के बारे में मालूम कर सकते हैं। ब्लड से भी एलर्जी का टेस्ट होता है, लेकिन यह महंगा है और कई मामलों में इसके परिणाम सटीक भी नहीं होते। लेकिन फूड एलर्जी का पता लगाने के लिए और बहुत छोटे बच्चों में ब्लड टेस्ट ही अधिक उपयोगी होता है। हालांकि मोडिफाइड स्किन प्रिक टेस्ट में दर्द नहीं होता और 40 मिनट में परिणाम सामने आ जाता है।
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आमतौर पर दवाएं एलर्जी को पूरी तरह खत्म या कम नहीं कर सकतीं। ये सिर्फ एलर्जी के लक्षणों को ही कम कर सकती हैं। यानी जब तक दवा लेते रहेंगे, तब तक एलर्जी नहीं होगी। इसे बंद करते ही फिर से वह एलर्जी उभर आएगी। तो इससे बचने का सबसे कारगर उपाय यह है कि हम इस बात का पता लगाएं कि हमारी अमुक एलर्जी की सटीक वजह क्या है और फिर उनसे खुद को बचाया जाए।
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कुछ मरीजों में केले, बैंगन, मूंगफली, अजीनोमोटो से एलर्जी होती है, लेकिन खासकर सांस संबंधित एलर्जी जैसे नाक की एलर्जी, बार-बार सर्दी होना या अस्थमा की एलर्जी का संबंध खान-पान से बहुत कम होता है। ऐसे में इन लोगों को खाने संबंधी परहेज़ करने की जरूरत नहीं होती। मेरे पास आए मरीज़ों में मुझे सांस संबंधी एलर्जी का मुख्य कारण किसी झाड़ी, घास, पौधे के परागकण अथवा घर की धूल में मौजूद महीन डस्ट माइट्स, कॉकरोच, बिल्ली के बाल में मौजूद सलाइवा के उड़ते कण, मकड़ी के जाले इत्यादि मिला। अर्थात ये परागकण अथवा धूल के कीटाणु नाक में जाकर एलर्जी पैदा करते हैं, न कि खाई हुई चीजें।
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एलर्जी हमेशा जीवित चीजों से मिलने वाले कणों जैसे प्रोटीन, हैप्टन अथवा पॉलीसेकराइड्स से होती है। यह भी एक भ्रम है कि धुआं, मसालों की खुशबू या कुछ बघारते समय खांसी अथवा छींक आना एलर्जी है। दरअसल ये सभी नाक की झिल्ली म्युकोसा में तनाव या इरिटेशन पैदा करते हैं। यह एलर्जी नहीं है।
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- एलर्जिक रायनिटिस (नाक की एलर्जी)
- बच्चों और बड़ों का अस्थमा
- एटोपिक एग्जिमा (त्वचा की एलर्जी)
- क्रोनिक युर्टिकेरिया (त्वचा की एलर्जी)
- एंजियोनियोरॉटिक ऑडिमा (होठों पर सूजन)
- एनाफिलेक्सिस (अचानक प्रतिक्रिया से शॉकअथवा मृत्यु होना)
- आंखों की एलर्जी
- फूड एलर्जी जैसे दूध, अंडे या मूंगफली की वजह से पेट दर्द या डायरिया आदि।
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जिन लोगों को सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़) यानी फेफड़े-श्वास संबंधी बीमारी है, उन्हें सर्दी के मौसम में बहुत सुबह सैर पर नहीं जाना चाहिए। धूप निकलने के बाद ही सैर पर जाना चाहिए। दिवाली में पटाखों के धुएं आदि से भी खुद को यथासंभव बचाना चाहिए। इसके लिए अच्छे मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। पटाखों के बारूद से भी कुछ लोगों को एलर्जी हो सकती है, इसलिए पटाखे इस्तेमाल करने के बाद अच्छी तरह हाथ धोकर ही कुछ भी खाना-पीना चाहिए।
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Source: Health