सेहतनामा- जंक फूड खाने वालों के लिए चेतावनी:स्टडी में खुलासा, फास्ट फूड से बढ़ रहा डिमेंशिया, दिल, दिमाग और लिवर खतरे में

पिछले दिनों अमेरिका में अल्जाइमर्स एसोसिएशन की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में एक रिसर्च पेश की गई। 43 सालों तक चली इस रिसर्च में 1 लाख 30 हजार लोगों को शामिल किया गया था। रिसर्च में सामने आया कि जो लोग लगातार अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड खा रहे थे और जितनी अधिक मात्रा में खा रहे थे, उन्हें उतना ही गंभीर डिमेंशिया हो गया। डिमेंशिया, एक ऐसी बीमारी जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, भाषा, रीजनिंग पॉवर और सोचने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। जबकि जिन लोगों ने अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड से दूरी बनाई या कम फ्रीक्वेंसी में इसका सेवन किया, वे लोग अधिक स्वस्थ बने रहे। सवाल है कि ये लोग अल्ट्रा प्रॉसेस्ड खाने में क्या खा रहे थे? ये सभी प्रॉसेस्ड रेड मीट, बेकन, हॉट डॉग्स और सॉसेज खा रहे थे। सब इंडस्ट्रियली प्रोड्यूड प्रोसेस्ड जंक फूड है। अगर यही स्टडी भारत में हुई होती तो ये सारे सवाल पिज्जा, बर्गर, फ्राइज और पैक्ड चिप्स पर होते। चाट, समोसा, कचौरी पर भी कम सवाल नहीं होते। इनके सेवन से भी हमारी सेहत को बहुत नुकसान हो रहे हैं। आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे इंडियन फूड्स की। साथ ही जानेंगे कि- हम खाना क्यों खाते हैं? आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले यह बुनियादी बात समझते हैं कि हम खाना क्यों खाते हैं? उसका प्राइमरी मकसद है न्यूट्रिशन यानी पोषण। हम जीवित और स्वस्थ रहने के लिए भोजन करते हैं। अमेरिका के जाने-माने पूर्व पत्रकार और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में गेस्ट लेक्चरर हैं माइकल पॉलन। उनकी किताब ‘द ऑम्निवोर्स डिलेमा’ न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर रही है। ऑम्निवोर्स का अर्थ है सर्वाहारी यानी ऐसा जीव, जो शाकाहार और मांसाहार दोनों करता हो। मनुष्य एक ऑम्निवोर जीव है। अपनी किताब में पॉलन भोजन की बुनियादी जरूर को कुछ इस तरह आर्टिकुलेट करते हैं। अमेरिकन रिसर्च में क्या सामने आया स्टडी की 10 बड़ी बातें खाना कितना फायदेमंद या नुकसानदायक उसकी प्रॉसेसिंग से तय होता है कोई खाना कितना फायदेमंद या नुकसानदायक होगा, यह उसके तैयार होने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है। खाना खेत में उगने से लेकर हमारी थाली तक पहुंचने में जिन प्रक्रियाओं से गुजरता है, उसे प्रॉसेसिंग कहते हैं। खाना पकाने का पारंपरिक तरीका बेस्ट है फर्ज करिए कि हम अपनी रोजाना की थाली में रोटी, सब्जी, दाल और चावल खाते हैं। अब सब्जी को ही ले लीजिए। यह पहले खेत से आती है। फिर हम इसे धोते हैं, काटते हैं, पकाते हैं। इसमें स्वाद के लिए नमक, मिर्च और मसाले मिलाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हम करेले, लौकी, तोरई और आलू को कच्चा तो नहीं खा सकते हैं। सब्जी की तरह दाल भी खेत से आती है। हम उसे दलते हैं। फिर साफ करके नमक, पानी और हल्दी के साथ उबालकर खाते हैं। स्वाद के लिए घी मिलाते हैं। यह सब फूड की प्रॉसेसिंग है, जो उसे सुपाच्य और हेल्दी बना रही है। जाहिर है, हम कच्ची दाल तो नहीं खा सकते। खाएंगे भी तो इसे पचाने में 4 दिन से एक हफ्ते तक लग जाएंगे। दूध की बात करें तो इससे दही, मक्खन, छांछ और घी बनता है। कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य ने अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में भोजन को प्रॉसेस करने के कई तरीके ईजाद किए। प्रॉसेसिंग की यह प्रक्रिया हेल्दी है। फूड को प्रॉसेस करने से– यह सारी प्रॉसेसिंग अच्छी और जरूरी है। समस्या तब शुरू होती है, जब खाना बनाने की कमान इंडस्ट्री के हाथ में जाती है। इंडस्ट्री ने खराब किया हमारा खाना जब हमारा खाना तैयार करने की जिम्मेदारी फूड इंडस्ट्री के हाथ में आई तो यहीं से सारी गड़बड़ियां भी शुरू हो गईं। इसमें कंपनियों को बहुत बड़े पैमाने पर बेहद कम समय में ढेर सारा खाना तैयार करना होता है। इसके लिए उन्होंने बड़ी-बड़ी मशीनें तैयार की और उन्हें इंसानों की जगह काम पर लगा दिया। इस बीच उन्होंने मुनाफे के लिए दो बड़ी बातों को अपना मूल धर्म बनाया। सस्ते और स्वादिष्ट खाने ने किया नुकसान इंडस्ट्रियल फूड प्रोडक्शन ने सबसे अधिक नुकसान किया है। उन्होंने खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें बहुत सारा शुगर और सॉल्ट मिलाया। इंडस्ट्री ने खाने को सस्ता रखा ताकि इसके ज्यादा-से-ज्यादा खरीदार मिल सकें। किसी चीज को कम कीमत में तैयार करना है तो फॉर्मूला आसान है, इसमें सस्ती-से-सस्ती चीजें मिला दी जाएं। उन्होंने इसे बनाने में बेहद सस्ते पाम ऑइल, मैदा और मिठास इस्तेमाल की। इसके बाद इनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए सस्ते प्रिजर्वेटिव्स मिलाए गए। इस दौरान ये बहुत सारे प्रॉसेस से गुजरा। इसलिए इसे अल्ट्रा प्रॉसेसिंग कहते हैं। जंक फूड्स में हमारी पहली पसंद पिज्जा, बर्गर, और पैक्ड चिप्स सभी इसी अल्ट्रा प्रॉसेसिंग से गुजर रहे हैं। ये बेहद नुकसानदायक है। हमें कैसा भोजन करना चाहिए सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट और ‘वनडाइटटुडे’ की फाउंडर डॉ. अनु अग्रवाल कहती हैं कि हमारा भोजन कैसा होना चाहिए? इस सवाल के जवाब स्थान और इंसान की जरूरत के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं। इसके बावजूद एक आदर्श थाली हर जगह एक जैसी होगी। स्थानीयता के अनुसार सब्जियां और फल बदले जा सकते हैं, फिर भी उनकी मात्रा कैलोरी और पोषक तत्वों के आधार पर एक जैसी होती है।
Source: Health

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Follow by Email
Facebook
Twitter
Pinterest
Instagram