सेहतनामा- मल देखकर पता चलेगा, ऑटिज्म है या नहीं:गट बैक्टीरिया बताता बीमारी का हाल, सारी बीमारियों का कारण और इलाज पेट

विज्ञान किसी जादू से कम नहीं है। हर रोज विज्ञान सफलता की नई ऊंचाइयां छू रहा है और मनुष्य के शरीर से जुड़े नए रहस्यों का अनुसंधान कर रहा है। ताजा जानकारी ये है कि अब बच्चों के स्टूल यानी मल की जांच करके यह पता लगाया जा सकता है कि कहीं वे ऑटिज्म का शिकार तो नहीं हैं। इस साइंस रिसर्च की डीटेल्स हाल ही में ‘नेचर माइक्रोबायोलॉजी कल्चर’ में पब्लिश हुई हैं। पिछले दो दशकों में पेट यानी गट और गट माइक्रोबायोम्स को लेकर जो अभूतपूर्व साइंस रिसर्च हुई हैं, यह उसी कड़ी में अगला बड़ा कदम है। यह खबर पढ़ने और सुनने वालों को आश्चर्य हो सकता है कि भला हमारे दिमाग के न्यूरॉन्स और मल का आपस में क्या कनेक्शन है। दिमागी कंडीशन का पता किसी के मल की जांच करके कैसे लगाया जा सकता है। असल में इस टेस्ट में किसी व्यक्ति के गट बैक्टीरिया की जांच की जाती है। स्टडी में पता चला है कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के गट बैक्टीरिया दूसरे सामान्य बच्चों से अलग थे और आपस में मेल खाते थे। आज ‘सेहतनामा’ में गट बैक्टीरिया और सेहत के कनेक्शन के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- पूरी दुनिया में ऑटिज्म के आंकड़े सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, दुनिया में हर 100 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है। पूरी दुनिया में करीब 7 करोड़ 50 लाख बच्चे इससे प्रभावित हैं। अमेरिका में यह स्थिति अधिक गंभीर है। वहां हर 36 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है। ऑटिज्म क्या है ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है। इससे प्रभावित लोगों का जीवन कम्युनिकेशन से जुड़ी समस्याओं के कारण दूसरों की तुलना में अधिक कठिन होता है। आमतौर पर ऑटिज्म का पता बहुत देर से चल पाता है। यही वजह है कि इससे प्रभावित लोगों की कंडीशन बिगड़ती चली जाती है। जबकि इस बीमारी में जानकारी और जागरुकता ही सबसे कारगर उपाय है। इसका कोई इलाज या दवा उपलब्ध नहीं है। ऑटिज्म को ASD यानी ऑटिस्टिक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहते हैं। इसका मतलब है कि इससे प्रभावित हर व्यक्ति को ऑटिज्म के लक्षण अलग तीव्रता से महसूस हो सकते हैं। ऑटिज्म का इलाज क्या है मौजूदा वक्त में ऑटिज्म का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालांकि कुछ दवाओं की मदद से डिप्रेशन, दौरे, अनिद्रा और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी जैसे लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। बच्चों के माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को ट्रेनिंग दी जा सकती है, ताकि ऑटिस्टिक बच्चे का जीवन आसान हो सके। पहले इसे सिर्फ बच्चों की बीमारी माना जाता था। पिछले कुछ सालों में स्पष्ट हुआ है कि यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। कुछ लोगों में इसके लक्षण कम उम्र में उभर आते हैं, जबकि कई लोगों के लक्षण युवा होने के बाद सामने आते हैं। नई स्टडी से क्या बदलेगा यह स्टडी कम उम्र में ऑटिज्म की पहचान करने में मदद करेगी। अगर कम उम्र में इसका पता चल जाए तो बच्चे के व्यवहार, सीखने-बोलने की क्षमता में सुधार किए जा सकते हैं। इसमें स्पेशल एजुकेटर काफी मददगार हो सकते हैं। ऑटिज्म का इलाज बच्चों के डॉक्टर, डेवलपमेंटल न्यूरोलॉजिस्ट, ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट इत्यादि के टीम वर्क से किया जाता है। गट बैक्टीरिया हैं छोटा पैकेट, बड़ा धमाका गट बैक्टीरिया को लेकर पिछले कुछ सालों में हुई स्टडी से यह साबित हुआ है कि सिर्फ ऑटिज्म ही नहीं, शरीर की तकरीबन सभी बीमारियों और विकारों की जड़ में हमारा पेट में करोड़ों-अरबों की संख्या में रह रहे माइक्रोब्स हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि आंखों से नहीं दिखते हैं। इन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है। इतनी नन्ही सी जान कमाल की चीज है। गट माइक्रोब्स की प्रकृति पर हमारा स्वास्थ्य, मन, व्यक्तित्व बहुत कुछ निर्भर करता है। आइए इस लेख के आगे के हिस्से में विस्तार से समझते हैं कि कैसे माइक्रोब्स हमारी पूरी जिंदगी, मन, शरीर, स्वास्थ्य और सोच को प्रभावित करते हैं। दिमाग से है सीधा कनेक्शन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गट-मस्तिष्क का एक-दूसरे से सीधा संबंध है। आपने देखा होगा कि स्ट्रेस होने पर पाचन संबंधी समस्याएं या पेट की बीमारियां होने लगती हैं। जबकि इसके ठीक विपरीत पेट की समस्याओं का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। हमारा स्वभाव भी गट माइक्रोब्स पर निर्भर है हमारा स्वभाव तक इन माइक्रोब्स पर निर्भर करता है। गट बैक्टीरिया के रहने के स्थान को गट माइक्रोबायोम कहते हैं। अगर इसमें संतुलन बिगड़ा और बुरे किस्म के गट बैक्टीरिया बढ़ गए तो हमें क्रोध, चिंता और उदासी का अनुभव अधिक होगा। जबकि हेल्दी गट बैक्टीरिया हमारे मन को प्रसन्न रखने में मदद करते हैं। इसके ठीक विपरीत हमारी सभी भावनाओं का सीधा असर इन गट माइक्रोब्स यानी पेट के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ब्लड शुगर और डायबिटीज से कनेक्शन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, गट माइक्रोब्स ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में भी मददगार हो सकते हैं। इससे टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में भी मदद मिलती है। स्टडी में देखा गया कि जब हमारे पेट में हेल्दी माइक्रोबायोम था यानी सभी तरह के बैक्टीरिया का संतुलन बना हुआ था, तब ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता था। जबकि अनहेल्दी माइक्रोब्स बढ़ने पर डायबिटीज की शिकायत हो गई। एक ही तरह का खाना खाने के बावजूद किसी व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल तेजी से बढ़ सकता है। जबकि दूसरे व्यक्ति में यह धीरे-धीरे बढ़ेगा। ऐसा गट माइक्रोब्स की प्रकृति के कारण होता है। हार्ट हेल्थ पर पड़ता है असर नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल 2015 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, गट माइक्रोबायोम दिल की सेहत को भी प्रभावित कर सकता है। 1,500 लोगों पर की गई इस स्टडी में पाया गया कि हेल्दी गट माइक्रोब्स HDL कोलेस्ट्रॉल यानी हेल्दी कोलेस्ट्रॉल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहीं अनहेल्दी गट माइक्रोब्स ट्राइमेथिलैमाइन एन-ऑक्साइड (TMO) के उत्पादन को बढ़ावा देते हैं, जो दिल की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है। TMO एक तरह का रसायन है, जिससे आर्टरीज में रुकावट पैदा हो सकती है। नतीजतन दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है। गट माइक्रोब्स की पसंद का भोजन करने से सुधरेगी सेहत सभी स्टडीज इस ओर इशारा करती हैं कि हेल्दी गट माइक्रोब्स की संख्या अधिक रहेगी तो हमारी सेहत भी अच्छी रहेगी। अगर हम हेल्दी माइक्रोब्स की पसंद का खाना खाएं तो इससे मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।
Source: Health

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Follow by Email
Facebook
Twitter
Pinterest
Instagram