सेहतनामा- गुजरात में फैल रहा घातक चांदीपुरा वायरस:बच्चों को बनाता शिकार, मच्छर और मक्खी से फैलता संक्रमण, बचाव के 6 उपाय
By : Devadmin -
17 जुलाई यानी बुधवार को पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने पुष्टि की कि गुजरात में 4 साल की बच्ची की मौत चांदीपुरा वायरस के कारण हुई है। इस वायरस के कारण मरने वालों की संख्या अब 15 हो गई है। अब तक लगभग एक दर्जन जिलों से कुल 29 मामले सामने आए हैं। इनमें से 26 गुजरात से, 2 राजस्थान से और एक मामला मध्य प्रदेश का है। इस वायरस के कारण मरने वालों में 13 गुजरात से हैं, जबकि एक-एक पड़ोसी प्रदेश राजस्थान और मध्य प्रदेश से हैं। मामलों की संख्या में लगातार इजाफा देखकर गुजरात सरकार सक्रिय हो गई है। संदिग्ध क्षेत्रों में 50,000 से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग (जांच) की गई है। सभी जिला और ग्रामीण अस्पतालों को संदिग्ध मामलों के नमूने NIV सेंटर को भेजने के लिए कहा गया है। चांदीपुरा वायरस के अध्ययन और रोकथाम के लिए विशेष टीम भी बनाई है। यह वेक्टर डिजीज (मच्छर और कीट से फैलने वाली बीमारी) है और काफी घातक होती है। यह छोटे बच्चों के लिए अधिक खतरनाक है। इसके संक्रमण के कारण सिर में सूजन बढ़ने लगती है, जो न्यूरोलॉजिकल कंडीशन में बदल जाती है। जांच और इलाज में थोड़ी सी देरी या लापरवाही मौत का कारण बन सकती है। इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे चांदीपुरा वायरस की। साथ ही जानेंगे कि- चांदीपुरा वायरस क्या है चांदीपुरा वायरस नाम सुनने में नया लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसका पहला केस 1965 में महाराष्ट्र के एक गांव चांदीपुरा में सामने आया था। इसीलिए इसका नाम चांदीपुरा पड़ गया। गुजरात में लगभग हर साल इस वायरस के मामले दर्ज होते हैं। हालांकि इस बार मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए यह फिर से चर्चा में आ गया है। इस वायरस का संबंध बैकुलोवायरस से है। इसका मतलब है कि यह मच्छर, टिक और सैंड फ्लाई (रेत मक्खी) जैसे वेक्टर के काटने से फैलता है। चांदीपुरा वायरस के लिए कोई विशेष एंटीवायरल उपचार उपलब्ध नहीं है। चूंकि यह घातक बीमारी है और इसके लक्षण तेजी से बिगड़ सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि जांच में इसका समय पर पता लगाया जा सके और इलाज के समय ठीक से देखभाल हो। चांदीपुरा वायरस से संक्रमित आधे से अधिक लोगों की हो जाती है मौत द लैंसेट में साल 2003 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, चांदीपुरा वायरस का सबसे खतरनाक पहलू इसका डेथ रेट है। जब साल 2003-2004 में यह मध्य भारत में तेजी से फैला था तो फैटेलिटी रेट (मृत्यु दर) 56-75% तक थी। इसका मतलब हुआ कि चांदीपुरा वायरस से संक्रमित आधे से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। इसमें छोटे बच्चों की संख्या अधिक होती है क्योंकि उनका दिमाग तीव्र सूजन सहन कर पाने में सक्षम नहीं होता है। चांदीपुरा वायरस के क्या लक्षण हैं इसके संक्रमण से एन्सेफलाइटिस होने का खतरा होता है। इसका अर्थ है कि वायरस के संक्रमण से मस्तिष्क के टिश्यूज में सूजन या जलन होने लगती है। आमतौर पर तेज बुखार इसका शुरुआती लक्षण होता है। इसके सभी लक्षण ग्राफिक में देखिए। चांदीपुरा वायरस इसलिए अधिक खतरनाक है कि इसके लक्षण एकदम अचानक आते हैं और तेजी से बिगड़ते चले जाते हैं। अगर समय पर सही इलाज और देखभाल न मिले तो घातक हो जाते हैं। यही कारण है कि गुजरात के गांवों में इसे लेकर लोगों को अधिक जागरुक किया जा रहा है। चांदीपुरा वायरस के इन्फेक्शन से बचाव के क्या उपाय हैं इसके इन्फेक्शन से बचाव के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। ग्राफिक में देखिए: आइए ग्राफिक में दिए पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं। हाइजीन बनाए रखें: नियमित रूप से साबुन और पानी से हाथ धोते रहें। अगर संभावित रूप से संक्रमित वातावरण या जानवरों के संपर्क में आए हैं तो सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। जानवरों से बचाव: चांदीपुरा वायरस जंगली और घरेलू जानवरों में भी फैल सकता है। उनके रहने के स्थान के आसपास रह रहे कीड़े और मच्छर संक्रमण के वाहक बन सकते हैं। इसलिए जब भी जानवरों के आसपास जाएं तो पूरे बाजू के कपड़े पहनकर जाएं। व्यक्तिगत सुरक्षा जरूरी: संभावित रूप से संक्रमित जानवरों को संभालते समय दस्ताने और मास्क जैसी जरूरी सुरक्षात्मक चीजें पहनकर रखें। इससे संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है। वेक्टर नियंत्रण जरूरी: इस वायरस को फैलाने में कीड़े और मच्छरों की संभावित भूमिका अधिक है। इसलिए जोखिम कम करने के लिए कीड़े भगाने वाली दवा और मच्छरदानी का उपयोग करना चाहिए। इम्यूनिटी मजबूत रखें: फल और सब्जियों से भरपूर भोजन करें। कोशिश करें कि इसमें विटामिन C से भरपूर फल और सब्जियां अधिक हों। रोजाना एक्सरसाइज करें। रोज 7 से 8 गिलास पानी पिएं। इससे इम्यूनिटी मजबूत रहेगी तो इन्फेक्शन के खतरे कम हो जाएंगे। चांदीपुरा वायरस का इलाज क्या है चांदीपुरा वायरस के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या एंटीवायरल ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है। मरीज के लक्षणों को देखकर ही इसका इलाज किया जाता है। इसके इन्फेक्शन का जल्द-से-जल्द पता लगाना और इलाज होना बहुत जरूरी है, ताकि इसके घातक प्रभाव से बचा जा सके। अस्पताल में भर्ती कराएं: अगर किसी शख्स में चांदीपुरा वायरस के लक्षण दिख रहे हैं तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाएं क्योंकि इसके लक्षण तेजी से बिगड़ सकते हैं। डॉक्टर से सलाह लेकर जरूरी होने पर अस्पताल में भर्ती कराएं। समय पर उचित इलाज मिलने से मरीज आसानी से ठीक हो सकता है। बुखार कम करने की दवा दें: इस वायरस के संक्रमण से बुखार तेजी से बढ़ता जाता है। इसका असर मस्तिष्क पर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि अस्पताल पहुंचने से पहले बुखार कम करने की दवा दें। हाइड्रेशन जरूरी है: चांदीपुरा वायरस से उल्टी और डायरिया की शिकायत हो सकती है, जो डिहाइड्रेशन का कारण बन सकता है। इसके चलते गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए ORS का घोल देते रहें, अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टर से इसके अन्य उपाय के लिए भी सलाह अवश्य लें। गहन देखभाल जरूरी: चांदीपुरा वायरस के लक्षण कई बार बेहद गंभीर हो सकते हैं। खासकर एन्सेफलाइटिस की स्थिति बनने पर न्यूरोलॉजिकल समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। इसलिए इलाज के दौरान मरीज की गहन देखभाल जरूरी है। एंटीकॉन्वल्जेंट्स दिलवाएं: अगर संक्रमण के कारण मरीज को दौरे पड़ रहे हैं तो डॉक्टर से सलाह लेकर इन्हें नियंत्रित करने के लिए एंटीकॉन्वल्जेंट्स दिलवा सकते हैं।
Source: Health