विश्व जनसंख्या दिवस:प्रजनन और वृद्धि दर में कमी जैसे 4 संकेत जो बताते हैं जनसंख्या विस्फोट के खतरों से बाहर आ रहा है भारत
By : Devadmin -
कभी भारत की बढ़ती आबादी को चिंता की तरह देखा जाता था। लेकिन जनसंख्या विस्फोट के जिन खतरों की पहले बात होती थी अब वो नहीं होती। पिछले चार दशकों में आबादी बढ़ने की रफ्तार में जो परिवर्तन हुए हैं वो विस्फोट के खतरों को कम करने वाले हैं। पढ़िए बदलती आबादी के आंकड़ों पर रिसर्च रिपोर्ट… भास्कर रिसर्च
1947 में आजादी के बाद से भारत की आबादी में एक अरब से अधिक लोगों का इजाफा हो चुका है। अभी लगभग अगले 40 वर्षों तक जनसंख्या बढ़ने की उम्मीद है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर दशकों से गिर भी रही है और अब देश “जनसांख्यिकीय आपदा’ यानी जनसंख्या विस्फोट के खतरों से बाहर आने की ओर बढ़ रहा है। इसे कुछ आंकड़ों से समझा जा सकता है। 1971 और 1981 के बीच, भारत की जनसंख्या हर साल औसतन 2.2% बढ़ रही थी। हालांकि इसके बाद वृद्धि दर में गिरावट शुरू हुई और 2001 से 2011 के बीच वृद्धि दर धीमी पड़ गई। यह 1.5% रह गई। अब तो यह और भी कम है। इस बीच भारत में प्रजनन दर में भी काफी गिरावट आई है। लेकिन भविष्य में, मृत्यु दर भी बढ़ने का अनुमान है। यह तथ्य भी आबादी पर नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि भारत 2060 के दशक में आबादी के शीर्ष पर पहुंच जाएगा। उसके बाद भारत की आबादी कम होना शुरू होगी। जानते हैं कैसे भारत की आबादी बढ़ने की दर घटी और क्यों विस्फोट का खतरा अब उतना डरावना नहीं माना जाता हैं। आबादी मे सुधार के सकारात्मक संकेत वृद्धि दर : देश की जनसंख्या वृद्धि दर विश्व के लगभग समान 1951 की जनगणना के समय भारत की आबादी 36 करोड़ के करीब थी। जबकि 1980-81 में बढ़कर करीब 70 करोड़ हो गई। लेकिन इसी 1980 के दशक में भारत की आबादी की वृद्धि दर में कमी आने लगी। 2020 में वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर विश्व के औसत से नीचे गिर गई। अब अनुमान लगाए जा रहे हैं कि यह अंतर बढ़ता जाएगा। 1950 में भारत में आबादी की सालाना वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत थी। तब दुनिया में आबादी की वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत सालाना थी। 2023-24 में दुनिया और भारत दोनों की सालाना वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत है। 2065-66 में वृद्धि दर शून्य होने का अनुमान है। जबकि इसके बाद वृद्धि दर माइनस में जा सकती है। यानी आबादी घटने लगेगी। परिवारों का आकार : देश में बढ़ रही है छोटे परिवारों की संख्या
देश में आबादी वृद्धि दर घटने का असर परिवारों के आकार पर भी पड़ रहा है। छोटे परिवारों की संख्या बढ़ रही है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2019 और 2021 के बीच अधिकांश घरों में सदस्य संख्या तीन से पांच के बीच रही। जबकि 1970 और 1980 के दशक में परिवारों में 5 से 6 सदस्य होते थे। वर्तमान 23 प्रतिशत से अधिक परिवारों में सदस्य संख्या चार है। देश के सिर्फ 4 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं, जिनमें सदस्य संख्या नौ से ज्यादा है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में 5 या अधिक सदस्यों वाले परिवारों की हिस्सेदारी अधिक है। परिवारों का छोटा आकार भी जनसंख्या नियंत्रण का संकेत है। फर्टिलिटी रेट : 25 सालों में मात्र 1.29 रह जाएगी प्रजनन दर
भारत की प्रजनन दर अब आबादी के रिप्लेसमेंट के स्तर से नीचे गिर गई है। यानी वर्तमान आबादी बरकरार नहीं रह पाएगी। हालांकि प्रजनन दर भारत के हर राज्य में गिर रही है। लेकिन इसमें भी भारत के राज्यों के बीच बड़ा अंतर है। दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में, टोटल फर्टिलिटी रेट पहले से ही अन्य राज्यों की तुलना में कम हैै। भारत में 1950 में फर्टिलिटी रेट 5.73 था। तब दुनिया में यह आंकड़ा 4.86 था। 2023 में भारत में फर्टिलिटी रेट 2 है। जबकि वैश्विक 2.31 है। 2050 तक यह गिरकर 1.29 हो जाएगा। जबकि 2100 तक भारत में फिर्टलिटी रेट 1.04 के चिंताजनक स्तर को छू सकता है। जन्म और मृत्य में अंतर : उम्र बढ़ने के साथ जन्म मृत्युदर बढ़ेगी
भारत की जनसंख्या वृद्धि में कमी अब तक केवल प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण रही है। लेकिन भविष्य में, बढ़ती मृत्यु दर भी भूमिका निभाएगी। 1950 में सालाना 1.56 करोड़ लोग जन्म ले रहे थे। जबकि 79 लाख लोगों की मौत हुई। साल 2024 में 2.3 करोड़ जन्म और 95 लाख मौत का अनुमान है। आबादी की औसत उम्र बढ़ने के साथ यह आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है। 2065 में जन्म और मृत्यु बराबर यानी करीब 1.76 करोड़ होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2100 में मृत्यु 2 करोड़ से अधिक और जन्म 1.3 करोड़ रहने का अनुमान है। लिंगानुपात के मामले में दक्षिण के राज्य बेहतर
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़ों के अनुसार लिंग अनुपात प्रति 100 महिलाओं पर 106.453 पुरुष है। यह अनुपात वर्ष 2100 में घटकर 101.944 हो जाने का अनुमान है। हालांकि लिंगानुपात के मामले में दक्षिण के राज्य बेहतर हैं। केरल में प्रति हजार पुरुषों पर 1084 महिलाएं, तमिलनाडु में (995) और आंध्र प्रदेश में 992 महिलाएं हैं। जबकि हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों पर 877 महिलाएं ही हैं। उम्मीद के आंकड़े भारतीय शहरों में प्रजनन दर विकसित देशों से कम भारतीय आबादी के कुछ आंकड़े चौंकाते हैं। जैसे कुछ शहरों में प्रजनन दर दुनिया के विकसित देशों से भी कम हो गई है। इसी तरह देश के ही उत्तर और दक्षिण के राज्यों में जनसंख्या
वृद्धि दर में अंतर भी चौंकाता है। फर्टिलिटी रेट विकसित देशों से कम
आंध्रप्रदेश के शहरी क्षेत्रों में फर्टिलिटी रेट 1.47 प्रतिशत है। जबकि नॉर्वे में 1.50 फीसदी है। फर्टिलिटी रेट यानी हर महिला कितने बच्चों को जन्म दे रही है। देखिए ऐसे ही कुछ और उदाहरण- इन राज्यों के शहरों में दुनिया में
महाराष्ट्र 1.50 जर्मनी 1.53
कर्नाटक 1.50 यूके 1.56
गुजरात 1.65 अमेरिका 1.66
तेलंगाना 1.75 फ्रांस 1.79
आंध्रप्रदेश 1.47 नार्वे 1.50 वृद्धि दर बिहार में सबसे ज्यादा राज्यों में, बिहार में 2024 में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.44% है, इसके बाद झारखंड में 1.25% और गुजरात में 1.20% हैं। राज्यों में तमिलनाडु की वृद्धि दर सबसे कम 0.30 प्रतिशत है। 2050 में आबादी की औसत उम्र होगी 38.7 वर्ष 28.62 वर्ष है भारत में अभी आबादी की औसत उम्र अभी भारत में 28.62 वर्ष है जनसंख्या की औसत आयु, जबकि दुनिया में लोगो की औसत उम्र 30.74 साल है। लेकिन आने साले कुछ वर्षों में यह स्थिति बदल जाएगी। 2050 में भारत में लोगों की औसत आयु 38.7 हाे जाएगी। जबकि दुनिया की आबादी की औसत उम्र 35.92 होगी। भारत की आबादी आज और कल भारतीय आबादी का दुनिया में प्रभाव देश के बाहर 3.54 करोड़ भारतीय, कनाडा जाने वाले 326 फीसदी बढ़े दुनिया में भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार विदेशों में कुल भारतीयों की आबादी 3 करोड़ 54 से ज्यादा है। इसमें से 1 करोड़ 58 लाख एनआरआई हैं। जबकि 1 करोड़ 95 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे देशों के बारे में जहां भारतीय आबादी अहम है- अमेरिका : 72 यूनिकॉर्न में भारतीय को-फाउंडर
अमेरिका में 40 लाख से अधिक भारतीय हैं। यह वहां की आबादी का करीब 1.5% है। भारतीय मूल के सीईओ फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 16 का नेतृत्व करते हैं, जो 27 लाख रोजगार देती हैं। इन कंपनियों का राजस्व एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। अमेरिका के 648 यूनिकॉर्न में से 72 में भारतीय को-फाउंडर हैं। कनाडा : भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है
यहां एनआरआई 1.78 लाख से अधिक हैं। जबकि भारतीय मूल की जनसंख्या 15.10 लाख से अिधक है। 2013 से 2023 के बीच, भारतीय 32,828 से बढ़कर 139,715 हो गए, जो 326% की वृद्धि है। 2016 और 2019 के बीच कनाडा के विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्र 182% बढ़ गए हैं। यूनाइटेड किंगडम : इकोनॉमी में 6 से 7 प्रतिशत योगदान
यूके में अनिवासी भारतीयों की जनसंख्या 3 लाख 51 हजार है। जबकि भारतीय मूल के व्यक्तियों की जनसंख्या 1 लाख 41 हजार से ज्यादा है। वहां की कुल आबादी का यह 2 से 3 प्रतिशत हिस्सा है। जबकि भारतीय आबादी का यूके की अर्थव्यस्था में योगदान 6 से 7 प्रतिशत के बीच है, जो काफी अहम है। यूएई : यहां की आबादी में 30% से अधिक भारतीय
यूएई में अनिवासी भारतीयों की संख्या 35 लाख से अधिक है। भारतीय प्रवासी यहां सबसे बड़ा जातीय समुदाय है जो देश की आबादी का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। खाड़ी के देशों जैसे यूएई, सऊदी अरब, कुवैत, कतर और ओमान में 80 लाख से अधिक भारतीय लोग हैं।
Source: Health