इसरो ने मई में आए सोलर-स्टॉर्म की तस्वीरें जारी कीं:आदित्य-L1 के रिमोट सेंसिंग पेलोड ने कैप्चर किया; इसी तूफान से ऑरोरा बोरेलिस बना था
By : Devadmin -
भारत का पहला सौर मिशन आदित्य-L1 ने सूर्य की कुछ तस्वीरें कैप्चर की हैं, जिन्हें इसरो ने सोमवार को जारी किया। यह तस्वीरें मई 2024 में आए सोलर स्टॉर्म की हैं। जिन्हें आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट के पर लगे दो ऑनबोर्ड रिमोट सेंसिंग इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए लिया गया। यह वही सोलर स्टॉर्म था, जिसके कारण भारत के लद्दाख समेत दुनिया के कई हिस्सों में आसमान एक अनोखी रोशनी से लाल हो गया था। ये तस्वीरें कोरोनल मास इजेक्शन की
तस्वीरें जारी करते हुए इसरो ने X पर पोस्ट में लिखा कि सोलर अल्ट्रा वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) और विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) ने मई 2024 के दौरान सोलर एक्टविटीज को कैद किया है। साथ ही लिखा कि आदित्य-L1 के पेलोड ने कोरोनल मास इजेक्शन से जुड़े कई एक्स-क्लास और एम-क्लास फ्लेयर्स को कैप्चर किया। 8 मई से 15 मई के दौरान सूर्य पर एक्टिव रीजन AR13664 ने कई X-क्लास और M-क्लास फ्लेयर्स का विस्फोट किया। जो 8 मई और 9 मई के दौरान हुए कोरोनल मास इजेक्शन (CME) से जुड़े थे। इनसे 11 मई को एक बड़ा जिओमैग्नेटिक तूफान उठा। ये तस्वीरें सनस्पॉट, अम्ब्रा, पेनम्ब्रा और प्लेज की चमक को दिखाती हैं। इसरो का कहना है कि इनसे एस्ट्रोफिजिसिस्ट (अंतरिक्ष की घटनाओं पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक) को सोलर फ्लेयर्स, उनके एनर्जी डिस्ट्रीब्यूशन, सनस्पॉट, वाइड वेवलैंथ में यूवी रेडिएशन और लॉन्गटर्म सोलर वैरिएशन की स्टडी में मदद मिलेगी। कोरोनल मास इजेक्शन (CME) क्या है
CME, और सोलर फ्लेयर दो अलग-अलग चीजें हैं। पहले माना जाता था कि सोलर फ्लेयर्स के साथ ही सूरज के कोरोना से CME की घटना भी होती है, लेकिन अब वैज्ञानिक मानते हैं कि हर CME के साथ, सोलर फ्लेयर हो ऐसा जरूरी नहीं है। CME के नाम से अर्थ निकलता है- सूरज की कोरोना लेयर से किसी चीज का बाहर आना। ये दरअसल बड़े-बड़े गैस के बबल हैं जिन पर मैग्नेटिक फील्ड लाइंस लिपटी होती हैं। जब सूरज से एक CME रिलीज होता है तो उसके साथ-साथ स्पेस में सूरज के करोड़ों टन चार्ज्ड पार्टिकल भी रिलीज होते हैं। ये पार्टिकल 30 लाख किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलते हैं। अगर इन कणों की दिशा पृथ्वी की तरफ है तो पृथ्वी पर जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म आ सकता है। इस जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म को ही दूसरे शब्दों में सोलर स्टॉर्म कहते हैं। इस तूफान का मतलब है- पृथ्वी की अपनी मैग्नेटिक फील्ड में डिस्टर्बेंस। CME के करोड़ों टन चार्ज्ड पार्टिकल के चलते CME की एक बेहद ताकतवर मैग्नेटिक फील्ड बन जाती है और ये मैग्नेटिक फील्ड जब पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड से टकराती है तो एक भयंकर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक अवरोध पैदा होता है, सोलर स्टॉर्म इसी अवरोध का प्रभाव है। सोलर स्टॉर्म का पहला लक्षण है- औरोरा। माने आकाश में रोशनी जो कि इतनी तेज होती है कि रात में अखबार पढ़ा जा सके। इसके अलावा भी सोलर स्टॉर्म पृथ्वी पर कई तरह के बुरे प्रभाव डाल सकता है। सूर्य की सतह पर सोलर स्टॉर्म कैसे बनता है
हम सूरज के जिस हिस्से को पृथ्वी से देखते हैं उसे फोटोस्फेयर कहा जाता है। ये कोई ठोस सतह नहीं है बस यह हमें एक गोल चमकदार आकृति सा दिखता है। इसके ऊपर सूरज का एटमॉस्फियर यानी वातावरण होता है। इस एटमॉस्फियर की सबसे निचली परत क्रोमोस्फेयर कहलाती है जबकि सबसे ऊपर की परत को कोरोना कहते हैं।सूरज की रोशनी के चलते सामान्य तौर पर कोरोना नहीं दिखता, लेकिन सूर्यग्रहण के दौरान या फिर खास यंत्रों के जरिए इसे देखा जा सकता है। इसी कोरोना पर कुछ घटनाएं होती हैं जिनसे सोलर स्टॉर्म पैदा होता है। 10 मई को धरती से टकराया था सोलर स्टॉर्म दुनिया का सबसे शक्तिशाली सौर तूफान 20 सालों बाद शुक्रवार 10 मई को धरती से टकराया था। तूफान के कारण तस्मानिया से लेकर ब्रिटेन तक आसमान में तेज बिजली कड़की। वहीं कई सैटेलाइट्स और पावर ग्रिडस को भी नुकसान पहुंचा। सोलर तूफान के कारण दुनिया की कई जगहों पर ध्रुवीय ज्योति (ऑरोरा) की घटनाएं देखने को भी मिलीं। इस दौरान सौर तुफान की वजह से आसमान अलग-अलग रंगों को दिखाई दिया। पढ़ें पूरी खबर… 127 दिन में लैंगरेंज पॉइंट पर पहुंचा था आदित्य-L1
आदित्य-L1 को 2 सितंबर 2023 के दिन लॉन्च किया गया था। इसके 127 दिन बाद 6 जनवरी 2024 को वह लैग्रेंजियन पॉइंट पर पहुंचा था। एल1 पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। आदित्य स्पेसक्राफ्ट यहां से लगातार बिना किसी रुकावट के सूर्य की गतिविधियों को कैप्चर कर सकता है।
Source: Health