ICMR बोला- कोवैक्सिन के साइड इफेक्ट्स वाली रिसर्च भ्रामक-गलत:कहा- रिसर्च पेपर से हमारा नाम हटाया जाए, हमने स्टडी के लिए कोई मदद नहीं दी
By : Devadmin -
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) की एक रिसर्च में सामने आया कि कोवैक्सिन के भी साइड इफेक्ट्स हैं। इसमें ICMR का हवाला दिया गया। अब भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने इस पर प्रतिक्रिया दी है और इसे गलत बताया है। ICMR ने BHU को एक नोटिस भेजा है। इसमें ICMR के डायरेक्टर जनरल डॉ. राजीव बहल ने लिखा है कि जिस रिसर्च में यह दावा किया गया है कि अध्ययन में वैक्सीन लेने वाले लोगों पर गंभीर साइड्स इफेक्ट्स देखे गए, वह रिसर्च पूरी तरह भ्रामक और गलत तथ्यों पर आधारित है। इसका ICMR से कोई लेना-देना नहीं है। ICMR ने इसके लिए कोई मदद नहीं दी है। रिसर्च पेपर से ICMR का नाम हटाया जाए और एक माफीनामा छापा जाए। ग्राफिक्स में देखें रिसर्च में कोवैक्सिन से होने वाले कौन से साइड इफेक्ट्स सामने आए… एक तिहाई लोगों में कोवैक्सिन के साइड इफेक्ट्स दिखे
16 मई को इकोनॉमिक टाइम्स ने साइंस जर्नल स्प्रिंगरलिंक में पब्लिश हुई एक रिसर्च के हवाले से लिखा था कि भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन- कोवैक्सिन के भी साइड इफेक्ट्स हैं। रिसर्च के मुताबिक, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में हुई स्टडी में हिस्सा लेने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में कोवैक्सिन के साइड इफेक्ट्स देखे गए। इन लोगों में सांस संबंधी इन्फेक्शन, ब्लड क्लॉटिंग और स्किन से जुड़ी बीमारियां देखी गईं। शोधकर्ताओं ने पाया कि टीनएजर्स, खासतौर पर किशोरियों और किसी भी एलर्जी का सामना कर रहे लोगों को कोवैक्सिन से खतरा है। जिन्हें टाइफाइड हुआ उन्हें भी खतरा
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले जिन टीनएजर्स और महिला वयस्कों को पहले से कोई एलर्जी थी और जिन्हें वैक्सीनेशन के बाद टाइफाइड हुआ उन्हें खतरा ज्यादा था। वहीं, 0.1% प्रतिभागियों में गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) की पहचान हुई। गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) एक ऐसी बीमारी है जो लकवे की ही तरह शरीर के बड़े हिस्से को धीरे-धीरे निशक्त कर देती है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक (NINDS) के मुताबिक, गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) एक रेयर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। भारत बायोटेक ने कहा था- कोवैक्सिन के चलते किसी बीमारी का केस सामने नहीं आया
कुछ दिन पहले कोवैक्सिन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने कहा था कि उनकी बनाई हुई वैक्सीन सुरक्षित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोवैक्सिन के दो डोज लगवाए थे। 2 मई को कंपनी ने कहा था कि कोवैक्सिन की सुरक्षा का मूल्यांकन देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया था। कोवैक्सिन बनाने से लगाने तक लगातार इसकी सेफ्टी मॉनिटरिंग की गई थी। कोवैक्सिन के ट्रायल से जुड़ी सभी स्टडीज और सेफ्टी फॉलोअप एक्टिविटीज से कोवैक्सिन का बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड सामने आया है। अब तक कोवैक्सिन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग, थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया, TTS, VITT, पेरिकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस जैसी किसी भी बीमारी का कोई केस सामने नहीं आया है। कंपनी ने कहा था कि अनुभवी इनोवेटर्स और प्रोडक्ट डेवलपर्स के तौर पर भारत बायोटेक की टीम यह जानती थी कि कोरोना वैक्सीन का प्रभाव कुछ समय के लिए हो सकता है, पर मरीज की सुरक्षा पर इसका असर जीवनभर रह सकता है। यही वजह है कि हमारी सभी वैक्सीन में सेफ्टी पर हमारा सबसे पहले फोकस रहता है। कोवीशील्ड को लेकर भी विवाद
कोवीशील्ड को लेकर विवाद चल रहा है कि इसे लगाने से कुछ केस में लोगों को थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। स्ट्रोक और हार्ट बीट थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। दरअसल, भारत में सबसे पहली कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड है। इसे पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया है। कोवीशील्ड फॉर्मूला ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से लिया गया है। एस्ट्रेजेनेका ने अब ब्रिटिश अदालत में माना कि उनकी वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट्स हैं। यह खबर भी पढ़ें… भास्कर एक्सप्लेनर- क्या कोवीशील्ड वैक्सीन से हो रहा हार्ट अटैक : कंपनी ने माना- खून का थक्का जम सकता है; 7 जरूरी सवालों के जवाब जब कोविड की वैक्सीन कोवीशील्ड UK में लॉन्च हुई तब ब्रिटेन के तब के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ‘ब्रिटिश विज्ञान की जीत’ बताया था। भारत में भी सबसे पहले और सबसे ज्यादा इसी कोवीशील्ड की 175 करोड़ डोज अब तक लगाई जा चुकी हैं। इस वैक्सीन को लेकर अब बड़ा खुलासा हुआ है। कोवीशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने UK के कोर्ट में दिए गए बयान में माना है कि इस वैक्सीन से शरीर के किसी हिस्से में खून जमाने वाला ‘रेयर साइड इफेक्ट’ हो सकता है। पढ़ें पूरी खबर…
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