सेमीक्रायोजेनिक इंजन का एक और टेस्ट सक्सेसफुल:इससे LVM3 रॉकेट की ताकत बढ़ेगी, इसी से भारत ने लॉन्च किया था चंद्रयान-3 मिशन

सेमी क्रायोजेनिक इंजन के डेवलपमेंट में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो ने एक और टेस्ट पास कर लिया है। स्पेस एजेंसी ने बताया कि सेमी क्रायोजेनिक इंजन को स्टार्ट करने के लिए प्रीबर्नर को इगनाइट करना पड़ता है। इसी का टेस्ट सक्सेसफुल रहा है। ये टेस्ट 2 मई 2024 को महेंद्रगिरी में किया गया। ये इंजन इसरो के LVM3 रॉकेट की पेलोड कैपेसिटी को बढ़ाने में मदद करेगा। LVM3 वही रॉकेट है जिसके जरिए भारत ने अपना च्रंदयान-3 मिशन लॉन्च किया था। च्रंदयान-4 मिशन में भी इसी रॉकेट का इस्तेमाल होगा। विकास इंजन को रिप्लेस करेगा सेमी क्रायोजेनिक इंजन
इसरो का सेमी क्रायोजेनिक इंजन लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) और केरोसीन के कॉम्बिनेशन पर काम करता है। ये 2,000kN का थ्रस्ट जनरेट करता है। जब ये इंजन बनकर तैयार हो जाएगा तो LVM3 रॉकेट की सेकेंड स्टेज में लगे विकास इंजन को रिप्लेस करेगा। दुनिया ने क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी देने से मना किया तो भारत ने खुद बनाई स्पेस इंडस्ट्री में 1961 में शुरू हुआ था क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई इंडस्ट्री में होता है। स्पेस इंडस्ट्री में 1961 में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ था। तब अमेरिका ने एटलस रॉकेट में तरल हाइड्रोजन और तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया था। क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी ग्रीक शब्द “क्रायोस” से आई है, जिसका अर्थ है “ठंडा”। यहां अत्यधिक ठंडे तापमान पर पदार्थों को बनाया, स्टोर, ट्रांसपोर्ट और इस्तेमाल किया जाता है। अत्यधिक ठंड के कारण मटेरियल्स में केमिकल रिएक्शन होते हैं। उदाहरण के लिए, ठंडा होने पर पदार्थ गैस से तरल में बदल जाते हैं या सॉलिड फॉर्म धारण कर लेते हैं।
Source: Health

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