ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे कई कलाओं में निपुण भी हो सकते हैं, जरूरत सिर्फ ख्याल रखने की है
By : Devadmin -
हेल्थ डेस्क. ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान जितनी कम उम्र में होगी, उसका इलाज उतना ही कारगर होगा। बच्चे के विकास के साथ ही उसके लक्षणों पर गौर करते रहना जरूरी है। शिशु रोग विशेषज्ञ और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल से जानिए ऑटिज्म के लक्षण और इलाजे के बारे में…
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एक दंपती अपने पांच साल के बेटे को उपचार के लिए मेरे पास लेकर आए थे। स्कूल में टीचर्स को उस बच्चे से बहुत शिकायतें थीं। टीचर्स का कहना था कि बच्चा कोई बात नहीं सुनता है, अनुशासनहीनता करता है और अपनी ही दुनिया में रमा रहता है। माता-पिता का स्वाभाविक प्रश्न और चिंता यही थी कि उनका बच्चा मानसिक रूप से रिटार्डेट (विकलांग) तो नहीं है? बच्चे की जांच और माता-पिता से बात करने पर मैंने पाया कि वह आंखें नहीं मिलाता, नाम लेने पर अनसुना कर देता है और पूछी गई बातों के जवाब देने के बजाय उन वाक्यों और शब्दों को ही दोहराता है। बच्चे को दरअसल ऑटिज्म था।
ऑटिज्म ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में लोग तभी चर्चा करते हैं, जब उनके परिवार में या किसी नजदीकी रिश्तेदार के बच्चे को यह बीमारी हो जाती है। जबकि यह ऐसा विषय है, जिसके बारे में सभी को जानकारी और जागरुकता होना बेहद जरूरी है, ताकि ऐसे बच्चों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आया जा सके। यह बीमारी आनुवंशिक नहीं है और किसी भी बच्चे को हो सकती है। ऐसे में बीमारी से लड़ने के लिए सिर्फ जानकारी और जागरुकता ही सही ढाल है।
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यह बच्चों के मस्तिष्क में कुछ असामान्य-सी परिस्थिति से उत्पन्न अवस्था है, जिसमें औरों से भावनात्मक लगाव नहीं होता। इस बीमारी से ग्रसित लोगों की अपनी ही दुनिया होती है। साथ ही समझने और बोलने संबंधी समस्या भी होती है। इनकी सीखने की क्षमता भी कम होती है। ऑटिज्म के आरंभिक लक्षण डेढ़ से तीन वर्ष की उम्र में दिखने शुरू होते हैं, लेकिन आमतौर पर बच्चा छोटा है, यह मानकर माता-पिता इस बात को तब नहीं समझ पाते। बीमारी बाद में तब पकड़ में आती है, जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है। इसके प्रमुख लक्षणों में दूसरे बच्चों के साथ न खेलना, आंख से आंख मिलाकर न देखना, आवाज देने पर आवाज की ओर नहीं देखना, किसी भी चीज में कोई रुचि नहीं रखना शामिल होते हैं। थोड़ा बड़े होने पर अर्थपूर्ण वाले वाक्यों को बोलने में असमर्थ होना, हाइपर एक्टिव होना, दूसरे बच्चों के साथ मारपीट करना, शब्दों को दोहराना, किसी एक ही प्रक्रिया को बार-बार करना जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं। मेंटल रिटार्डेशन इनमें से अधिकांश में नहीं होता, किंतु सिखाते समय फोकस न करने की वजह से इन्हें स्कूल में कुछ समस्याएं आती हैं।
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ऑटिज्म की आशंका 200 में से एक बच्चे को होती है, जिसकी गंभीरता सभी में अलग-अलग हो सकती है। ऑटिज्म का पता लगाने के लिए किसी सीटी स्कैन या एमआरआई इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती। डॉक्टर्स सिर्फ क्लीनिकल परीक्षण और माता-पिता से पूछे गए कुछ प्रश्नों के आधार पर इसकी जांच करते हैं। लगभग दस प्रतिशत ऑटिज्म के मरीज किसी खास प्रतिभा में काफी अच्छे होते हैं, जैसे गणितीय कैलकुलेशन, संगीत, चित्रकारी और ऐसी ही कलाएं आदि।
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ऑटिज्म का कोई भी बाहरी कारण ज्ञात नहीं है। जीन्स में कुछ असामान्यता मस्तिष्क के विकास में असामान्यता ला सकती है। अच्छी बात बस यह है कि समय के साथ ऑटिज्म की बीमारी बढ़ती नहीं है। कारण के मूल का पता नहीं होने की वजह से रोकथाम का कोई भी तरीका चिकित्सा विज्ञान में विकसित नहीं हो सका है। ऑटिज्म किसे होना है और किसे नहीं, इसे न तो पहले से जाना जा सकता है और न ही रोका जा सकता है। डेढ़ से 2 साल की उम्र में ही ऑटिज्म है या नहीं, समझने के लिए माता पिता से प्रश्नों के आधार पर किया जानेवाला चैट स्कोर ऑटिज्म को समझने में एक उपयोगी और आसान तरीका है।
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ऑटिज्म का कोई भी इलाज नहीं है, लेकिन जल्दी उपाय शुरू करने से बच्चे के व्यवहार, सीखने-बोलने की क्षमता में सुधार किए जा सकते हैं। इसमें स्पेशल एजुकेटर काफी मददगार हो सकते हैं। ऑटिज्म का इलाज बच्चों के डॉक्टर, डेवलपमेंटल न्यूरोलॉजिस्ट, ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट इत्यादि के टीम वर्क से किया जाता है। दवाएं आमतौर पर मात्र फोकस को बेहतर करने या हाइपरएक्टिविटी कम करने के लिए दी जाती हैं। कुछ ब्रेन टॉनिक, आयरन सप्लीमेंट्स, ओमेगा 3 फैटी एसिड सप्लीमेंट्स, बायोटिन विटामिन सुधार ला सकते हैं। कुछ शोध कहते हैं कि घर में पालतू कुत्ते होना ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे के भावनात्मक और मानसिक विकास में सहायक हो सकते हैं।
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Source: Health