पांच साल पहले पता चल जाएगा हार्ट अटैक होगा या नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का रोल होगा अहम
By : Devadmin -
हेल्थ डेस्क. दिल की बीमारियों से अब इंसान और दवाएं ही नहीं तकनीक भी लड़ रही है। जो भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक की जानकारी दे रही है। थी-डी प्रिंटिंग हार्ट से ट्रांसप्लांट के लिए लगी कतार को कम करने की कोशिश जारी है। इतना ही नहीं, सर्च इंजन गूगल भी आंखों के जरिए हृदय रोगियों को पहले ही आगाह करने की तैयार कर रहा है। वर्ल्ड हार्ट डे पर जानिए तकनीक आपको हृदय रोगों से बचाने के लिए कितना काम कर रही है और कितना फायदेमंद साबित होगी…
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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जो पांच साल पहले ही हार्ट अटैक के संभावित खतरे के बारे में बता देगी। इस तकनीक में एक बायोमार्कर फिंगरप्रिंट का विकास किया गया है जिसे फैट रेडियोमिक प्रोफाइल (एफआरपी) नाम दिया गया है। एफआरपी, रक्त धमनियों में मौजूद फैट का जेनेटिक एनालिसिस कर भविष्य में पैदा होने वाले खतरों को चिह्नित करेगा। इससे इस बात का पता चल सकेगा कि व्यक्ति को भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है या नहीं।
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इजरायल में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को 3डी प्रिंटर के जरिए ऐसा मिनी दिल तैयार करने में सफलता मिली है, जोहबह वैसा ही है जो किसी प्राणी का होता है। इसके निर्माण में मानव की कोशिकाओं और बायोलॉजिकल सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इसका आकार अभी सिर्फ 2.5 सेंटीमीटर है। इंसानों के दिल का आकार लगभग 12 सेंटीमीटर होता है। भविष्य में इस आकार के दिल को प्रिंट करने की तैयारी चल रही है। इससे पहले भी कृत्रिम दिल बनाए गए हैं, लेकिन ये हृदय साधारण ऊतकों (टिशूज) से बनाए गए थे और उनमें रक्त धमनियां भी नहीं थीं।
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अमेरिका के मैसाचुसेट्स में ई-जेनेसिस स्टार्टअप के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए ऐसे पिग्स (सुअर) पैदा करने की योजना पर काम चल रहा है जिनके अंग (दिल भी शामिल) आसानी से मानव में प्रत्यारोपित किए जा सकें। ऐसा होने पर दिल के रोगों से होने वाली एक तिहाई मौतों को कम किया जा सकेगा। मानव शरीर में जानवरों के दिल के प्रत्यारोपण को लेकर शोधकार्य सालों से चल रहे हैं। लेकिन इसमें सफलता इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि मनुष्य और जानवर के दिल में बुनियादी अंतर होते हैं। इसीलिए अब जानवरों को ही मानव के अंगों के अनुसार ढालने पर काम करने की योजना है।
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गूगल ऐसी योजना पर काम कर रहा है जिसमें आंखों में झांकने भर से इस बात का पता चल सकेगा कि आने वाले सालों में व्यक्ति को दिल की बीमारी हो सकती है या नहीं। इस योजना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें रेटिना की तस्वीरों के जरिए व्यक्ति की उम्र, ब्लड प्रेशर और बॉडी मास इंडेक्स का तो पता चलेगा ही, इस बात की भी जानकारी हो सकेगी कि दिल के लिए घातक आदतों (जैसे पांच साल पहले ही इस बात की भविष्यवाणी कर सकेगा कि धूम्रपान) से उसके दिल को कितना खतरा हो सकता है। ऐसी ही व्यक्ति को हार्ट अटैक होने की कितनी आशंका होगी। करीब कई जानकारियों के आधार पर गूगल का डीप लर्निंग एल्गोरिद्म 3 लाख मरीजों पर इसका सफल ट्रायल भी हो चुका है।
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इसे अमेरिका की रेपथा कंपनी ने बनाया है। इसमें इवोलोक्यूमैब मूल दवा है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने का काम करती है। यह उन मरीजों के लिए उपयोगी होगा जिनका LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) काफी बढ़ा होता है और दवाइयों से काबू में नहीं आता।
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रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक निकोलस कॉन ने ऐसा उपकरण बनाया है जो टॉयलेट सीट में फिट किया जाएगा। इसमें लगे सेंसर्स मरीजों की जांघ के पिछले हिस्से में ब्लड ऑक्सिजीनेशन को मापकर उसके दिल की सूचना एकत्र करेंगे।
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यह नवीनतम पेसमेकर है। आम पेसमेकर की तुलना में यह 90% छोटा व कैप्सूल के आकार का है। इसकी खासियत है कि इसमें कोई लीड नहीं है जो सामान्य पेसमेकर में होती है। इसीलिए इसे लीडलेस पेसमेकर नाम दिया गया है। सीधे हृदय में लगाना संभव है।
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यह एआई युक्त उपकरण गले में लगेगा। यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉयस के शोधकर्ताओं द्वारा बनाया यह उपकरण शरीर के अंदर होने वाली गतिविधियां रिकॉर्ड करेगा। दिल में होने वाली हलचल भी रिकॉर्ड हो सकेगी। इसका इस्तेमाल टेली मेडिसिन में किया जा सकेगा।
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Source: Health