हेल्थ डेस्क. चाय की चुस्कियों के बिना भारतीयों की सुबह अधूरी है। पर ऐसा नहीं कि अकेले भारत में ही लोग चाय के दीवाने हैं। दुनिया भर में लोग चाय के अलग-अलग फ्लेवर और वैरायटीज को पसंद करते हैं। हमारे यहां गर्म चाय का चलन बहुत है, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में लोग आइस टी बहुत पसंद करते हैं। आइस टी के साथ कई फ्लेवर्स जुड़ते गए और इसका स्वाद जुदा होता गया।शेफ और फूड राइटर हरपाल सिंह सोखी बता रहे हैं इस खास टी के बारे में…
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उन्नीसवीं सदी में अमेरिका में चाय वहां के मुख्य पेय में शामिल थी। वह लोगों के जीवन का हिस्सा थी। 1904 में अमेरिका के मिसौरी स्थित सेंट लुईस शहर में एक दोपहर एक व्यापारी आम दिनों की तरह ही गर्म चाय बेच रहा था। चूंकि वह दिन आम दिनों की अपेक्षा थोड़ा गर्म था। इसलिए उसकी बिक्री कुछ खास नहीं थी। उस व्यापारी ने अपने नजदीक के आइसक्रीम बेचने वाले दुकानदार से थोड़ी सी बर्फ खरीदी और चाय में आइस मिलाकर बेचना शुरू कर दी। आइस टी का यह स्वाद ना सिर्फ लोगों को पसंद आया, बल्कि देखते ही देखते कई और लोगों ने इस आइस टी को बेचना शुरू कर दिया। ऐसा माना जाता है कि आइस टी की ईजाद के बाद दुनिया के कोनों- कोनों में यह प्रसिद्ध होती चली गई। आज हम बात पर्ल टी या बबल टी की कर रहे हैं। इसके बैकग्राउंड में भी आइस टी ही है। बबल टी पहली बार 1980 में ताईवान में पॉपुलर हुई थी, हालांकि इसका असल में ईजाद कहां हुआ है। इसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है। कई टी वेंडर्स खुद को बबल टी का प्रणेता मानते हैं। वैसे बबल टी को पॉपुलर करना का श्रेय ताइचुंग (ताइवान) स्थित एक टी हाउस ‘चुन शुई तांग’ के लुई हा-ची को जाता है।
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1980 के दशक में लुई हा-ची जापान की यात्रा पर गए थे, वहां उन्होंने देखा कि यहां कोल्ड कॉफी काफी प्रचलित है। इसी तरह का एक्सपेरिमेंट उन्होंने ताइवान में किया और उनका बिजनेस चल पड़ा। 1988 में उन्होंने मार्केट में ‘टैपिओका बॉल्स’ देखीं। उन्होंने एक्सपेरिमेंट करते हुए ये बॉल्स चाय में मिलाईं। और इस तरह पर्ल टी तैयार हो गई। एक और थ्योरी के मुताबिक हेनलिन टी हाउस के तू-सॉन्ग-हे ने कोल्ड टी में टैपिओका बॉल्स मिलाई थी। बबल टी दो तरह की होती है। पहली में दूध मिलाया जाता है, जबकि दूसरी बिना दूध की होती है। दोनों ही वैरायटी में ब्लैक, ग्रीन या उलोंग टी के अलावा फ्लेवर्स का स्वाद बढ़ाने के लिए दूसरे इंग्रेडिएंट मिलाए जाते हैं। ताईवान और आसपास के देशों में इस चाय के साथ टॉपिंग करने या कुछ सजावट के लिए पत्तियां सजा दी जाती हैं। शेक जैसी इस ‘बबल टी’ की टॉपिंग भी अलग-अलग तरह से की जाती है। कभी इसमें फ्रूट जैली, ग्रास जैली भी सजा दी जाती है। सबसे पुरानी बबल टी में गर्म ताइवनीज ब्लैक टी, छोटी टैपिओका पर्ल, कंडेस्ड मिल्क और शुगर या शहद को मिलाकर तैयार की जाती थी। आमतौर पर यह ठंडी ही सर्व की जाती है। चाय की तली में टैपिओका पर्ल होते थे। ये जैली और चुइंग गम के जैसे होते थे।
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पहले बबल टी बनाने में छोटे टैपिओका पर्ल का इस्तेमाल होता था, बाद में बड़े टैपिकोआ पर्ल इसमें उपयोग किए जाने लगे। बाद में कई तरह के फ्लेवर्स विशेषकर फ्रूट्स फ्लेवर भी पॉपुलर होते गए। चाय में फ्लेवर पाउडर, पल्प के रूप में मिल जाते हैं। इसके बाद ब्लैक, ग्रीन या उलोंग चाय में मिलाई जाती है। आजकल कई स्टोर्स पर बबल टी मिलती है। हालांकि यह मूल रूप से ताईवान की है, लेकिन कुछ स्टोर्स इसमें कई दूसरे देशों के फ्लेवर्स मिलाकर दे रहे हैं। जैसे गुड़हल के फूल, केसर, इलायची और गुलाबजल के फ्लेवर्स के साथ भी यह पॉपुलर हो रही है। टैपिओका पर्ल कसावा पौधे की जड़ों में पाए जाते हैं। ऑनलाइन स्टोर्स पर टैपिकोआ आसानी से उपलब्ध हैं।
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Source: Health