हेल्थ डेस्क. गेहूं के आटे से बनी रोटी, पूरी, पराठे और इस आटे से बने ढेरों खाद्य पदार्थ अमूमन हर भारतीय के भोजन का अनिवार्य हिस्सा हैं। गेहूं को शामिल किए बिना खाने की कल्पना करना भी हमारे लिए मुश्किल है, लेकिन सीलिएक बीमारी में शरीर गेहूं में मौजूद ग्लूटेन प्रोटीन के प्रति एलर्जिक हो जाता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है, उनका पाचन तंत्र गेहूं के आटे से बने किसी भी खाद्य को पचा नहीं पाता। नतीजतन यह खाना उनके लिए जहर बन जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बीमारी से ग्रसित अधिकांश लोगों को इस बीमारी के बारे में उम्र भर पता ही नहीं चल पाता। ऐसे लोग पेट दर्द, उल्टी और इससे जुड़ी दूसरी बीमारियों का इलाज कराते रहते हैं। ग्लूटेन एलर्जी के बारे में जानिए एलोपैथी डॉक्टर और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल से…
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सीलिएक में गेहूं में मौजूद प्रोटीन ग्लूटेन के विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं। ये एंटीबॉडीज कई बार कुछ लोगों में आंतों में ग्लूटेन पचाने वाले तत्वों को डैमेज करने लगती हैं। जिससे वह व्यक्ति गेहूं और इससे बनी किसी भी चीज़ों को नहीं पचा पाता। आमतौर पर बच्चों में छह माह की उम्र के बाद इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं। यह बीमारी अधिकांश मामलों में जेनेटिक है, लेकिन कुछ मामलों में परिवार में किसी सदस्य को हुए बिना भी यह हो सकती है।
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मेरे पास ट्रीटमेंट के लिए एक आठ साल का बच्चा लाया गया था। उस बच्चे की हाइट औसत से कम थी। एनीमिक होने के कारण बच्चे को तीन बार खून चढ़ चुका था। हालांकि जन्म के छह महीने के समय तक उसका वजन सामान्य बच्चों की तरह ही बढ़ा था, लेकिन जैसे ही उसकी मां ने खाना खिलाना शुरू किया, तब उसे परेशानियां होना शुरू हो गईं। उसे अक्सर लूज़ मोशंस और वोमिंटिग होती थीं। सीलिएक डिजीज के आमतौर पर यही लक्षण होते हैं। छह महीने की उम्र के बाद ये लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं, कुछ बच्चों में लक्षण देर से दिखाई पड़ते हैं। वजन ना बढ़ना, लंबे समय तक दस्त होना, बच्चों को बार-बार उल्टियां होना, पेट का फूलना, सप्लीमेंट्स देने के बाद भी हीमोग्लाोबिन कम बने रहना, जल्दी थक जाना इसके प्रमुख लक्षण है। हालांकि कई बार ये लक्षण पेट की बीमारियों से भी संबंधित होते हैं। लेकिन खून की कमी बने रहना, कमजोरी रहना, दवाओं का असर नहीं हो रहा हो तो सीलिएक बीमारी का टेस्ट जरूर करवा लेना चाहिए। इसकी बहुत ही आसान “टीटीजी’ जांच होती है। टीटीजी पॉजिटिव आने पर सीलिएक की पुष्टि होती है। 90 फीसदी मामलों में टीटीजी पॉजिटिव आने पर सीलिएक डिजीज होती है, लेकिन और पुष्टि करने के लिए एंडोस्कोपी करके बायोप्सी की जाती है।
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हमारे देश में सीलिएक के प्रति जागरूकता बहुत कम है। इसलिए जिंदगी भर लोगों को इसके बारे में मालूम ही नहीं चलता। लोगों की आंतें खाने को पचा नहीं पाती, शरीर कई मिनरल्स को अवशोषित ही नहीं कर पाता। यह वैसी ही स्थिति है, जैसे किसी व्यक्ति को महीनों-सालों तक खाना ही ना दिया जाए। इसलिए उसे कई बीमारियां घेर लेती हैं। सीलिएक के बारे में जितना जल्दी पता चलेगा, इससे पीड़ित व्यक्ति उतना अच्छा जीवन जिएगा। अगर लड़कियों में वयस्क होने की उम्र तक सीलिएक का पता नहीं चलता, तो उनका शारीरिक विकास रुक जाता है। मां बनने में भी दिक्कतें आती हैं, बार-बार मिसकैरेज हो सकता है। लड़कों में भी सीलिएक के कारण शारीरिक विकास नहीं हो पाता। सीलिएक के कारण कई बार ऑटोइम्युन बीमारियां जैसे टाइप 1 डायबिटीज या स्किन-ब्रेन से जुड़ी हुई ऑटोइम्यून बीमारियां हो सकती हैं। अगर ग्लूटेन फ्री डाइट ना ली जाए तो आंतों का कैंसर तक हो सकता है। इसके अलावा हार्ट अटैक, आर्टरी डिजीज और दूसरी कार्डियोवस्कुलर डिजीजका खतरा रहता है।
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ग्लूटेन एलर्जी दूर करने का दुनिया में कोई भी इलाज नहीं है। ना ही इसकी कोई दवा मौजूद है। इलाज के तौर पर सिर्फ डाइट कंट्रोल की जाती है। गेहूं के अलावा जौ और ज्वार में भी ग्लूटेन होता है, इसलिए जीवन भर जौ और ज्वार नहीं खाने की सलाह भी दी जाती है। कभी-कभी सीलिएक होने पर अगर डाइट कंट्रोल नहीं की गई है, तो दूध इंटॉलरेंस यानी दूध पचाने की ताकत भी खत्म हो जाती है? इसलिए सही समय पर इसका पता चलना जरूरी है। शरीर में पोषण की कमी ना हो इसके लिए कैल्शियम, विटामिन, आयरन, प्रोटीन आदि के सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं। जिन्हें ग्लूटेन से एलर्जी है, उन्हें गेहूं के अलावा प्रोटीन की चीजें जैसे दूध, दूध से बने उत्पाद, अंडे, सारे मांसाहारी उत्पादों को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। खाने में मक्के की रोटी दी जा सकती है।
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Source: Health