घटती याद्दाश्त का असर कम करने के लिए सूडोकू-क्रॉसवर्ड खेलें, रोजाना 9 हजार कदम चलें और खुश रहें

घटती याद्दाश्त का असर कम करने के लिए सूडोकू-क्रॉसवर्ड खेलें, रोजाना 9 हजार कदम चलें और खुश रहें



हेल्थ डेस्क. आज सुबह क्या खाया याद नहीं, कल रात किससे मिला भूल गया और घर आते गली पीछे निकल गई समझ नहीं पाया…। ये वो जवाब हैं जो बढ़ती उम्र में मेमोरी लॉस से जूझ रहे बुजुर्गों की जुबान से निकलते हैं। जिसे अक्सर नजरअंदाज करते हुए बुढ़ापे की समस्या बता तो दिया जाता है। यही है अल्जाइमर।

भारत में 40 लाख लोग घटती याद्दाश्त की समस्या से जूझ रहे हैं। अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे पायदान पर है। इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2017 के मुताबिक 2030 तक ये आंकड़ा 75 लाख तक पहुंच सकता है। पूरी तरह से इसका इलाज संभव नहीं है लेकिन कुछ दवाओं, लाइफस्टाइल में बदलाव और थैरेपी की मदद से घटती याद्दाश्त की रफ्तार को कम किया जा सकता है।

आज अल्जाइमर डे है, यह नाम डॉ. अलोइस अल्जाइमर के नाम पर पड़ा है। इस दिन का लक्ष्य लोगों को इसके प्रति जागरुक करना है। आर्टिमिस हॉस्पिटल गुरुगाम के डायरेक्टर ऑफ न्यूरोलॉजी डॉ. सुमित सिंह और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के डॉ. हरीश भाकुनी बता रहे हैं, अल्जाइमर से कैसे निपटा जाए….

  1. डिमेंशिया का मतलब है मेमोरी लॉस। अल्जाइमर डिमेंशिया का एक प्रकार है। डिमेंशिया के दो प्रकार हैं। पहला, वो जिसका इलाज संभव है। दूसरा, वो जिसका कोई इलाज नहीं है यानी डिजेनेरेटिव डिमेंशिया, अल्जाइमर इसी कैटेगरी की बीमारी है। ब्रेन की ऐसी कोशिकाएं जो मेमोरी को कंट्रोल करती हैं वो सूखने लगती हैं। जिसका असर गिरती याद्दाश्त के रूप में दिखता है और रिकवर करना नामुमकिन हो जाता है।

  2. कुछ ऐसे डिमेंशिया भी होते हैं जो आनुवांशिक होते हैं, ये एक पीढ़ी से दूसरी में पहुंचते हैं जो युवाओं में देखे जाते हैं। अब लोगों में इसके बारे में जागरुकता बढ़ रही है। इस वजह से इसे कम उम्र में भी नोटिस कर लिया जाता है। इलाज की मदद से इसका असर काफी हद तक कम किया जा सकता है।

  3. इसे पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं हो पाया है क्योंकि अब ऐसी दवाएं नहीं बन पाई हैं लेकिन इसकी वैक्सीन पर काम किया जा रहा है। ट्रीटमेंट में सबसे पहले मरीज को अधिक से अधिक दिमाग इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। सूडोकू खेलें, क्रॉसवर्ड पजल खेंले। ऐसी कई वेबसाइट भी हैं जहां एक बार रजिस्टर करने पर ये रोजाना दिमाग को एक्टिव रखने वाले पजल और सूडोकू भेजती हैं। जिस तरह शरीर के लिए फिजियोथैरेपी होती है ठीक वैसे ही दिमाग के लिए ये गेम मेंटल फिजियायोथैरेपी का काम करते हैं। कुछ दवाएं भी दी जाती हैं जो बीमारी की रफ्तार को धीमा करती हैं।

  4. भूलना सिर्फ एक लक्षण हैं इसके अलावा भी मरीज में कई बदलाव दिखते हैं। मरीज सिर्फ वर्तमान की चीजों को भूलता है, सालों पुरानी बातों को नहीं। जैसे कल रात क्या खाया था, किचन में जाना लेकिन टॉयलेट में पहुंच गए, चाय में नमक की जगह चीनी डाल दी, पैजामे को हाथों में पहनने लगे, पत्नी को बेटी समझ लिया, घर से बाहर गए तो वापस आने का रास्ता भूल गए, लोगों के चेहरे भूल गए जैसे लक्षण आमतौर पर दिखाई देते हैं। इसके अलावा कुछ मरीजों में हेलूसिनेशन यानी मतिभ्रम के लक्षण भी देखे जा सकते हैं। जैसे उन्हें लगता है दीवार पर छिपकली चल रही है या कमरे में काई जानवर आ गया जबकि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं होती है। इसके अलावा निर्णय न ले पाना, बार-बार मूड में बदलाव होना, मन में डर सा रहना जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं।

  5. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर के विशेषज्ञ डॉ. हरीश भाकुनी के मुताबिक, मेद्य रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ये खासतौर पर मेमोरी पर असर करते हैं। मेद्य रसायनों में शंखुपुष्पी, मुलेठी, गिलोय और ब्रह्मी शामिल हैं। दवाएं सीरप, काढा, वटी के रूप में दी जाती हैं। ये ब्रेन टिशु और कोशिकाओं को रिपेयर करने का काम करती हैं और याद्दाश्त के घटने की प्रक्रिया को धीमा करती हैँ। सारस्वतरिष्ट भी दवा के तौर पर दिया जाता है। दवाओं के अलावा मरीज को सोशल और बिहेवियर थैरेपी भी दी जाती है। कुछ योग क्रियाएं भी मेमोरी को बेहतर बनाने का काम करती हैं जैसे त्राटक क्रिया।

  6. अक्सर कहा जाता है स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ फिजिकली ही नहीं मेंटली फिट रहना भी जरूरी है। अल्जाइमर को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है लेकिन इसका असर कम या धीमा करने के लिए एक्सपर्ट शारीरिक और मानसिक रूप से एक्टिव रहने की सलाह देते हैं। रिसर्च में पुष्टि हुई है कि पूरी नींद, सुबह-सुबह पार्क में चहलकदमी और सूडोकू या दिमाग पर दबाव डालने वाले गेम घटती याद्दाश्त की रफ्तार को धीमा रखने में मदद करते हैं।

  7. अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में हुए शोध में कहा गया है कि गहरी नींद लेने वालों की याद्दाश्त बेहतर होती है। ऐसे जब सोकर उठते हैं तो खुद को तरोताजा महसूस करते हैं। ऐसे बुजुर्ग जो कम गहरी नींद लेते हैं उनके मस्तिष्क में एक खास किस्म के प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है जिससे उनकी याद्दाश्त में गिरावट आती है। शोध के मुताबिक युवावस्था और उसके बाद के समय में पूरी नींद न ले पाना मस्तिष्क स्वास्थ्य में गिरावट का एक बड़ा संकेत हो सकता है।

  8. हफ्ते में 5 दिन रोजाना आधा घंटा एरोबिक एक्सरसाइज बुजुर्गों में अल्जाइमर कर खतरा घटाता है। बीमारी के बढने की दर धीमा करता है। यह साउथ वेस्टर्न मेडिकल सेंटर की रिसर्च में सामने आया है। शोधकर्ताओं का कहना है, अल्जाइमर से जूझ रहे बुजुर्गों को एरोबिक्स और स्ट्रेचिंग कराई जाए तो इसका असर ब्रेन तक होता है। जिससे अल्जामर का खतरा बढ़ने की गति या तो बंद हो जाती है या धीमी हो जाती है। स्ट्रेचिंग के मुकाबले एरोबिक्स ज्यादा प्रभावी है। एरोबिक्स दिमाग के हिपोकैंपस की सिकुड़न को कम करता है। यह दिमाग का वो हिस्सा है जो मेमोरी को सहेजकर रखता है।

  9. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं के मुताबिक, रोजाना 8,900 कदम चलने से अल्जाइमर की समस्या को कम किया जा सकता है। अल्जाइमर की वजह दिमाग में एमिलॉयड बीटा प्रोटीन का बढ़ना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि रोजाना हल्की-फुल्की एक्सरसाइज बढ़ती उम्र में कमजोरी होती याददाश्त और बदलते व्यवहार को रोकने में मदद कर सकती है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि 182 लोगों पर हुए शोध में यह बात सामने आई है।

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      Source: Health

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