केले में दोगुना होगा विटामिन; बिना पानी के पैदा होंगी मछलियां, मिर्च जैसे तीखे टमाटर
By : Devadmin -
नई दिल्ली.देश में 1 से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया गया है।खाने को और पौष्टिक बनाने के लिए जानी-मानी यूनिवर्सिटीजकाम कर रही हैं। आज पढ़िए भविष्य के उस खाने के बारे में, जो अगले पांच-दस साल में बड़े स्तर पर आने वाला है।
ऐसा केला जिसमें विटामिन-ए होगा दोगुना
ऑस्ट्रेलिया की क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ने ऐसा केला विकसित किया है, जिसमें विटामिन-ए की मात्रा सामान्य केले से दोगुना होगी। दरअसल,ऐसा केला पपुआ न्यू गीनिया में पाया जाता है, इसकेले की जीन लेकर वैज्ञानिक इसे बना रहे हैं। फंडिंग गेट्स फाउंडेशन कर रहा है। 7 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हर साल दुनियाभर में विटामिन-ए की कमी के कारण हो जाती है।
कब तक आएगा: 2025 तक
पैदावार बढ़े इसलिए मिर्च जैसे तीखे टमाटर
ये टमाटर हरी मिर्च की तरह तीखा होगा। टमाटर में कैपसाइसिनॉइड्स होता है, यही तत्व मिर्च को तीखा बनाता है। वैज्ञानिक इसे जीन एडिटिंग की मदद से टमाटर में सक्रिय कर रहे हैं। ब्राजील की फेडेरल यूनिवर्सिटी ऑफ विकोसा के रिसर्चर अगस्टिन सोगोन कहते हैं कि कैपसाइसिनॉइड्स वजन घटाने में भी मददगार है। मिर्च के मुकाबले टमाटर को बड़े पैमाने पर उगाना आसान होता है।
- कब आएगा:2019 केअंत तक ये टमाटर उगा लिया जाएगा।
- कौन लाएगा:02 देश,ब्राजील और आयरलैंड काम कर रहे हैं।
सी फूड बनाएंगे लेकिन लैब में
अमेरिका की कंपनी ब्लनालू और फिनलेस फूड्स सेल बेस्ड सीफूड पर काम कर रही हैं। यानी ये किसी खास मछली या दूसरी जलीय जीव से कोशिका लेंगे और उसे लैब में विकसित करेंगे। ये है कि इस सी फूड में सिर, पैर और हड्डी जैसी चीजें नहीं होंगी। ये एक प्लास्टिक की शीट की तरह होगा।
- कब तक आएगा:इसके बारे में कंपनियों ने अभी नहीं बताया है।
ऐसा सेब जो काटने के बाद भी भूरा नहीं होगा
सेब के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि यदि उसे काटने के तुरंत बाद खाया नहीं गया तो वो काला या भूरा पड़ने लगता है। इससे बड़ी तादाद में सेब की बर्बादी होती है। कैनेड की कंपनी ओकानागन ने ऐसा सेब तैयार कर लिया है, जो काटने के बाद भी भूरा नहीं पड़ता।
- कब तक आएगा:अभी यह अमेरिका में उपलब्ध है। यूरोप में भी इसे अप्रूवल मिलने की बात चल रही है। संभव है कि ये एक-दो साल में यूरोपियन और दूसरे बाजारों में उपलब्ध हो।
लैब में तैयार होगा मीट, पर्यावरण भी बचेगा
दुनिया के कई स्टार्टअप इस समय लैब में मीट बनाने पर काम कर कर रहे हैं। ब्रिटेन के एडम स्मिथ इंस्टीट्यूट के रिसर्चर डॉ. मैडसन पाइरी कहते हैँ कि इससे कृषि में होने वाली ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 78 से 96% कम होगा। भारत में भी आईआईटी गुवाहाटी में भी लैब में मांस तैयार कर लिया गया है। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मोलिक्यूलर बायोलॉजी और नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट भी मीट का उत्पादन कर रहा है।
- 2013 में नीदरलैंड्स की मैसट्रिच्ट यूनिवर्सिटी ने पहली बार लैब में बर्गर बनाया। इस वर्ष तक विदेशों में इसके दाम काफी कम होंगे।
और सबसे अलग स्मार्ट फूड
शरीर को कितने और कैसे भोजन की जरूरत है इसके लिए स्मार्टफूड बन रहा है। ये आपकी जरूरत माइक्राचिप्स की मदद से समझेंगे और कस्टमाइज करके आपके लिए विशेष आहार तैयार करेंगे। अमेरिकी कंपनी सॉयलेंट, ब्रिटिश कंपनी ह्यूल और फ्रांस की कंपनी वाइटालीन इसपर काम कर रही हैं।
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Source: Health