सिर्फ 1 रुपए में स्वादिष्ट इडली-सांभर खिलाती हैं अम्मा, 80 की उम्र में भी हर काम खुद करती हैं
By : Devadmin -
लाइफस्टाइल डेस्क. सुबह के 6 बजते ही सांभर की खुशबू के बीच घर के दरवाजे खुलते हैं और ग्राहक लाइन लगाकर बैठ जाते हैं। बरगद के पत्ते पर गरमागरम इडली सांभर का आनंद लेते हैं वो भी सिर्फ एक रुपए में। तमिलनाडु के वड़िवेलम्पलयम गांव की इस दुकान को संभाल रही हैं कमलाथल। उम्र 80 साल है और एक इडली की कीमत है 1 रुपए। कमलाथल आज भी अपनी उम्र की दूसरी महिलाओं से फिट हैं और इनके जीवन का लक्ष्य लोगों को सस्ता और भरपेट भोजन उपलब्ध कराना है। इसकी शुरुआत कैसे हुई,पढ़िएपूरी कहानी…
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80 साल की कमलाथल की सुबह सूरज उगने से पहले हो जाती है। नहाने के बाद बेटे के साथ फार्म की ओर चल देती हैं। यहां सब्जियां, नारियल, नमक और चटनी के लिए मसाले रखे हैं। काम की शुरुआत सब्जियों के काटने से होती है जिसका इस्तेमाल सांभर बनाने में किया जाता है। सांभर चूल्हे पर चढ़ाने के बाद कमलाथल चटनी तैयार करती हैं। इटली बनाने के लिए सामग्री को एक दिन पहले ही तैयार करती हैं। सुबह 6 बजते ही ग्राहकों के लिए घर के दरवाजे खुलते हैं। टीनशेडके नीचे ग्राहक बैठकर एक रुपए में इडली-सांभर और चटनी का स्वाद चखते हैं। यहां आने वाले ज्यादातर ग्राहक ऐसे हैं जो रोजाना आते हैं।
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कमलाथल कहती हैं इसकी शुरुआत 30 साल पहले हुई थी। मैं एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हूं। सुबह-सुबह घर के सदस्य खेतों में पहुंच जाते थे और मैं अकेली पड़ जाती थी। तभी स्थानीय लोगों के लिए इडली बनाने का ख्याल आया। सुबह-सुबह काम पर पर जाने वाले मजदूरों के लिए इडली की छोटी सी दुकान शुरू की, ताकि इन्हें कम पैसे में ऐसा खाना मिले जो उन्हें सेहतमंद रखे।
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कमलाथल इडली बनाने में परंपरागत बर्तनों का प्रयोग करती हैं। मसाला पीसने से लेकर नारियल की चटनी बनाने तक का काम पत्थर की सिल पर करती हैं। उनका कहना है कि मैं जॉइंट फैमिली से हूं और अधिक लोगों का खाना बनाना मेरे लिए मुश्किल काम नहीं है। इडली बनाने की तैयारी एक दिन पहले ही शुरु कर देती हूं। रोजाना पत्थर पर 16 किलो चावल और दाल पीसती हूं। यह पूरी तरह फूल जाए इसलिए इसे रातभर के लिए रखना पड़ता है। इडली बनाने में हर दिन नई सामग्री का प्रयोग करती हूं।
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दुकान सुबह 6 बजे से दोपहर तक खुलती है। एक बार में सांचे से 37 इडली बनती हैं। रोजाना 1 हजार इडली बिकती हैं। 10 साल पहले तक एक इडली का दाम 50 पैसे था जिसे बाद में बढ़ाकर एक रुपए किया गया। इडली-सांभर को पत्तों पर परोसा जाता है जो उनके फार्म से ही आता है। यहां आने वाले ज्यादादर ग्राहक मजदूरतबके से हैं जिनके लिए रोजाना 20 रुपए खर्च करके भोजना खाना थोड़ा मुश्किल है।
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कमलाथल कहती हैं, रोजाना दुकान पर आने वाले लोगभरपेट इडली खा सकें, यह मेरे लिए एक लक्ष्य की तरह है। इसलिए मैंने इडली का दाम 1 रुपए रखा है। वे अपने पैसों की बचत करने के साथ पेट भी भर सकेंगे। दिनभर की दुकानदारी से मैं रोजाना 200 रुपए कमाती हूं। कई लोगों का कहना है मुझे इडली के दाम बढ़ाने चाहिए। लेकिन मेरे लिए लोगों का पेट भरना और जरूरतमंदों की मदद करना प्राथमिकता है। मैं भविष्य में कभी भी इसके दाम नहीं बढ़ाऊंगी। तमिलनाडु में एक इडली 5 से 20 रुपए में मिलती है।
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जैसे कमलाथल इडली के कारण प्रसिद्ध हुईं उनके ग्राहक बढ़ते गए। इडली का स्वाद चखने बोलूवमपट्टी, पूलुवमपट्टी, थेंकराई और मथीपल्लयम क्षेत्र से रोजाना ग्राहक यहां पहुंचते हैं। कमलाथल कहती हैं मैं बूढ़ी हो चुकी हूं इसलिए मेरे बेटे के बच्चे कई बार यह दुकान बंद करने के लिए कह चुके हैं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं लोगों के लिए खाना बनाता हूं क्योंकि मुझे इसमें आनंद मिलता है। यह मुझे सक्रिय रखता है। हाल ही में एक ग्राहक के कहने पर नाश्ते में उजुंथु बोन्डा शामिल किया गया है जिसकी कीमत 2.50 रुपए रखी गई है।
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यहां रोजाना आने वाले ग्राहक गोपी किशन का कहना है कि मां आज भी इडली पकाने के लिए गैस नहीं चूल्हे का इस्तेमाल करतींऔर मसाले पत्थर पर पीसती हैं। जब मैं यहां इडली खाना हूं तो लगता है मेरी मां मुझे खिला रही हैं।
कमलाथल अपनी फिटनेस का सीक्रेट बताते हुए कहती हैं मैं हमेशा से ही रागी और ज्वार का दलिया खाती थी। इसलिए ही इतनी सक्रिय हूं, चावल में इतना पोषण नहीं होता।
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Source: Health