अंगदान कर नौ लोगों को दे सकते हैं ज़िंदगी, हर साल सिर्फ 3500 लोगों को समय पर मिल पाते हैं अंग

अंगदान कर नौ लोगों को दे सकते हैं ज़िंदगी, हर साल सिर्फ 3500 लोगों को समय पर मिल पाते हैं अंग



हेल्थ डेस्क. ब्रेन डेड व्यक्ति के दिल, फेफड़े समेत कुल 25 ऑर्गन दूसरे जरूरतमंद व्यक्तियों के काम आ सकते हैं। लेकिन आज भी हर साल 3500 लोगों को ही समय पर अंग मिल पाते हैं। हमारे देश में करीब 10 लाख लोग गंभीर बीमारियों के चलते होने वाले ‘ऑर्गन फेल्योर’ यानी अंगों के काम बंद कर देने के कारण मौत के मुहाने पर खड़े हैं। इनमें से औसतन सिर्फ 3500 लोगों को ही समय पर अंग मिल पाते हैं, बाकी लोगों की मौत हो जाती है। ऑर्गन डोनेशन यानी अंगदान के लिए संसाधनों के अभाव के साथ जागरूकता की भी कमी है। एलोपैथी डॉक्टर और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल से समझिए अंगदान के बारे में…

  1. अंगदान दो तरह से होता है। पहले में जीवित व्यक्ति यानी लाइव डोनर अपनी एक किडनी, एक फेफड़ा, लिवर और आंतों का एक हिस्सा दान कर सकता है। लेकिन यह अंगदान वह सिर्फ अपने परिजन या किसी करीबी रिश्तेदार को ही कर सकता है। दूसरा होता है मौत (ब्रेन डेड) के बाद अंगदान। इसमें ब्रेन डेड व्यक्ति के दिल, फेफड़े समेत कुल 25 ऑर्गन किसी दूसरे जरूरतमंद व्यक्तियों के काम आ सकते हैं। इसके जरिए एक व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद एक साथ नौ लोगों को जिं़दगी दे सकता है। कोई व्यक्ति चाहे तो सिर्फ अपनी आंखें डोनेट करने का संकल्प ले सकता है या फिर अपना पूरा शरीर भी डोनेट कर सकता है।

  2. सामान्य मौत होने पर डोनेट की गईं सिर्फ आंखें और त्वचा ही काम में लाई जा सकती है। अन्य दूसरे अंग केवल ब्रेन डेड होने की स्थिति में ही काम में लिए जा सकते हैं। ब्रेन डेड में व्यक्ति का दिमाग पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है। ऐसे व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना शून्य रह जाती है। ऐसे ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग वेंटिलेटर पर होने के कारण काम करते रहते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति के अधिकांश ऑर्गन और टिशूज डोनेट किए जा सकते हैं। आमतौर पर ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर से निकालने के बाद किडनी 72 घंटे, लिवर 24 घंटे, कॉर्निया 14 दिन और दिल व फेफड़े 4 से 6 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं।

  3. अगर आप ऑर्गन डोनेशन का संकल्प लेना चाहते हैं, तो यह बेहद आसान है। इसके लिए आप नजदीक के किसी भी सरकारी अस्पताल में जाकर अंगदान संकल्प संबंधी फॉर्म भर सकते हैं। अगर अस्पताल में फॉर्म उपलब्ध नहीं है तो नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (नोटो) की वेबसाइट www.notto.gov.in पर जाकर फॉर्म भर सकते हैं। यह सरकारी वेबसाइट है। इसके टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 1800114770 पर भी संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ एनजीओ जैसे मोहन फाउंडेशन, गिफ्ट योर ऑर्गन आदि से भी संपर्क कर सकते हैं। एक बार ऑर्गन डोनेशन का संकल्प लेने के बाद ऑर्गन डोनेशन कार्ड हमेशा अपने साथ रखना चाहिए। ऑर्गन डोनेशन संकल्प के बारे में अपने परिजनों को भी जानकारी देकर रखनी चाहिए।

  4. ऑर्गन रेसिपिएंट्स यानी जिन्हें अंग की जरूरत है, ‌उनकी सूची ‘नोटो’ के पास होती है। ऐसे लोगों के परिजन खुद या हॉस्पिटल के जरिए भी नोटो के पास रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। अंग प्राप्त करने के लिए रेसिपिएंट्स का आर्थिक रूप से सक्षम होना बहुत मायने नहीं रखता। वेटिंग लिस्ट में प्राथमिकता बीमारी की गंभीरता के आधार पर तय होती है। इसके अलावा डोनर और जहां डोनेट की प्रोसेस होनी है, वह अस्पताल कितना नजदीक है, इससे भी तय होता है कि अंग किसे दिया जाएगा। फिर ब्लड ग्रुप मैच कर रहा है या नहीं, यह कारक भी अंगों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  5. ऑर्गन निकालने से ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। डॉक्टरों को बेहद संवेदनशीलता के साथ अंग निकालने के निर्देश होते हैं। कई लोगों में यह भी गलत धारणा बैठी हुई है कि मृतक (ब्रेन डेड) के अंग निकालने के बाद उसकी अंत्येष्टि उतनी आसान नहीं रह पाती। लेकिन सच तो यह है कि इससे ब्रेन डेड व्यक्ति की अंतिम क्रिया में कोई दिक्कत नहीं होती। अंगदान किए हुए व्यक्ति की उसी तरह अंत्येष्टि की जा सकती है, जैसी सामान्य व्यक्ति की होती है।

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      Source: Health

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