घर में मौजूद धूल भी अस्थमा अटैक का कारण, सफाई रखें और खिड़कियों पर पर्दे जरूर लगवाएं

घर में मौजूद धूल भी अस्थमा अटैक का कारण, सफाई रखें और खिड़कियों पर पर्दे जरूर लगवाएं



हेल्थ डेस्क.एलोपैथी डॉक्टर और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल के मुताबिक, बच्चों के अस्थमा के मामले को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ऐसा करना क्यों जरूरी है, इसे उन्होंने एक मरीज की कहानी बताकर समझाया।

मेरे पास इलाज के लिए आए 6 साल के बच्चे जसवंत की दिन भर से सांसें बहुत तेज थीं। माता- पिता के अनुसार उसे बार-बार सर्दी हो रही थी। सीने से आवाज आ रही थी। वह निमोनिया के कारण दो बार एडमिट भी हो चुका था। क्लीनिकली चैक करने पर मैंने पाया कि उसे अस्थमा था। सर्दी और तेज़ सांसों के चलते वह जब पिछली बार एडमिट हुआ था, तब भी कारण निमोनिया नहीं बल्कि अस्थमा के एपिसोड या छोटे अटैक्स थे। बच्चे का अस्थमा सुनकर स्वाभाविक तौर पर उसके पैरेंट्स चिंतित हुए। उन्हें यकीन करना मुश्किल था कि इस उम्र में भी अस्थमा हो सकता है। अस्थमा को लोग वयस्कों में या उम्र बढ़ने के साथ होने वाला रोग समझते हैं, लेकिन प्रदूषण, खानपान और लाइफस्टाइल में बदलाव के कारण इन दिनों लगभग 10 फीसदी बच्चों को अस्थमा हो रहा है। बच्चों में अस्थमा की ठीक समय पर पहचान और इलाज ना हो तो समय के साथ यह गंभीर होता जाता है।

  1. अस्थमा सांस की नलिकाओं में एलर्जी से उत्पन्न क्रोनिक इंफ्लैमेशन (गंभीर सूजन) की वजह से होता है। श्वास नली में बाहरी एलर्जी के प्रति किसी भी बेहद संवेदनशील तत्व के जाते ही श्वास नलिका के रास्तेसिकुड़ जाते हैं। छुई-मुई के पौधे को छूने पर जैसे पत्तियां बंद होती हैं, कुछ वैसी ही है यह प्रक्रिया। श्वास की नली के संकरी होने से सांस लेने में परेशानी होने लगती है, खांसी आनी शुरू हो जाती है या फिर सांस लेने पर सीटी जैसी अथवा घर्र-घर्र आवाज़ होने लगती है। अस्थमा में सांस लेने में दिक्कत या खांसी की समस्या कुछ दिन के लिए होती है, लेकिन कई मामलों में कुछ हफ्ते बल्कि महीनों तक बिना लक्षणों के भी रह सकती है। किसी खास मौसम जैसे बारिश या ठंड में भी इसके एपिसोड होते हैं। किंतु सही इलाज से बार-बार होने वाले इन एपिसोड से पूर्णतः निजात संभव है। साथ ही बार-बार बीमार होने से होने वाले शारीरिक, मानसिक विकास में अवरोध से भी बचा जा सकता है। कभी-कभार इलाज न लेने पर अस्थमा का एपिसोड जानलेवा भी हो सकता है।

  2. कुछ बच्चों में अस्थमा जैसे लक्षण मात्र दौड़ने या शारीरिक व्यायाम के बाद भी नजर आने लगते हैं। आमतौर पर ऐसे बच्चों को लंबे समय के इलाज की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन अगर सांस फूलने जैसी शिकायत बार-बार हो रही है, तो फिर डॉक्टर से कंसल्ट करने की जरूरत है। अस्थमा के टेस्ट के लिए भी एक्सरे या किसी ब्लड टेस्ट की जरूरत नहीं होती, सिर्फ क्लीनिकल परीक्षण से ही डॉक्टर इसका पता लगा सकते हैं। कुछ बच्चों में नाक की एलर्जी या एलर्जिक रायनाइटिस की समस्या होती है। बचपन में ही इसका समुचित इलाज करने पर आगे चलकर अस्थमा या साइनोसाइटिस की प्रॉब्लम होने से बचा जा सकता है।

  3. अस्थमा का इलाज दो चरणों में किया जाता है। पहला अस्थमा के एपिसोड को खत्म करने के लिए नेबुलाइजेशन और स्टेरॉयड दवाओं की जरूरत होती है। बच्चों को अस्थमा के बार-बार एपिसोड न हों, इसके लिए इन्हेलर दिए जाते हैं। इन्हेलर भी जरूरत के हिसाब से कुछ महीने, साल या सर्दी-बारिश जैसे विशेष मौसम में ही डॉक्टर्स लेने के लिए कहते हैं। अस्थमा में अलग-अलग गंभीरता के बच्चे होते हैं और इलाज उसी के अनुरूप दिया जाता है। बढ़ती उम्र के साथ काफी बच्चे ठीक भी हो जाते हैं। हालांकि कुछ बच्चों को आजीवन इलाज की आवश्यकता हो सकती है। नियमित व्यायाम, प्राणायाम और योग इसका बहुत अच्छा इलाज है। यहां तक कि स्वीमिंग भी फायदेमंद है, बशर्ते आप डॉक्टर द्वारा बताया इलाज भी समुचित ले रहे हों।

  4. बच्चों को अस्थमा ना हो, इसके लिए जरूरी है कि अपने घर में धूल बिल्कुल ना रहने दें। यही अस्थमा के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। मुमकिन हो तो कालीन (गलीचे) का इस्तेमाल न करें, खिड़की-दरवाज़ों पर पतले पर्दे लगाएंं, वैक्यूम क्लीनर से धूल साफ करते रहें। गाजर घास आदि को भी बच्चों से दूर रखें। अगर किसी को अस्थमा है भी तो फूल-पत्तियों या पेट्स से एलर्जी का इससे कोई संबंध नहीं है। हां, इससे एलर्जी हो सकती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि वह अस्थमा ही हो। बहुत बार अस्थमा से पीड़ित बच्चों की माताएं बच्चों को फल इत्यादि देना बंद करवा देती हैं। धूल के डर से बाहर खेलना भी बंद करवा देती हैं, जो कि ग़लत है। इससे बच्चे के शारीरिक विकास पर बुरा असर होता है।

  5. अस्थमा के इलाज में इन्हेलर के माध्यम से दी जाने वाली दवा सबसे सुरक्षित और हानिरहित होती है। इन्हेलर दवा को देने की एक विधि मात्र है जबकि इन्हेलर में मौजूद दवा अलग-अलग तरह और प्रभावों की होती हैं। इन्हेलर से दवा सांस की नली के उन हिस्सों मात्र में पहुंचती है, जहां समस्या है। चूंकि यह रक्त में नहीं जाती, इसलिए यह दवा सर्वाधिक सुरक्षित और साइड इफेक्ट से रहित होती है। यह भ्रांति भी अवैज्ञानिक है कि इन्हेलर के आदी हो जाते हैं।

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      Source: Health

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