फूड डेस्क. ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने कभी चाइनीज फूड न खाया हो। चाऊमीन, मंचुरियन, हक्का नूडल्स, शेजवान नूडल्स, फ्राइड राइस… ये सब ऐसे चाइनीज फूड हैं जो फाइव स्टार होटल्स से लेकर गली-चौराहों पर फूड स्टॉल्स तक में बेचे और खाए जाते हैं। यह अलग बात है कि हमारे यहां मिलने वाले चाइनीज फूड में भारतीय मसाले, भारतीय स्टाइल और भारतीय टेस्ट घुल-मिल गया है। इंडियन और चाइनीज फूड का एक तरह से फ्यूजन हो गया है। इसकी भी एक कहानी है। शेफ और फूड प्रजेंटेटर हरपाल सिंह सोखी से जानिए चाइनीज खाने में कैसे हुई भारतीयों मसालों की एंट्री…
-
चाइनीज इंग्रेडिएंट जैसे नूडल्स, कॉर्न स्टार्च, सोय सॉस में भारतीय इंग्रेडिएंट जैसे गरम मसाला, सोयाबड़ी, पत्तागोभी, गाजर, टमाटर सॉस इत्यादि मिलाकर जो डिश बनती है, उसे ही यहां चाइनीज फूड के नाम पर परोसा जाता है। ओरिजिनल चाइनीज फूड ऐसा नहीं होता। वह बहुत सिंपल होता है, जबकि हमारे यहां मिलने वाला चाइनीज फूड तरह-तरह के मसालों के साथ स्पाइसी होता है।
-
भारत में चाइनीज फूड के ट्रेंड की शुरुआत ब्रिटिशकालीन कलकत्ता (आज कोलकाता) से मानी जाती है। तब कलकत्ता उस मार्ग पर स्थित था, जहां से चाय और रेशम जैसी चीजें चीन से ब्रिटेन एक्सपोर्ट होती थीं। इस वजह से कलकत्ता जल्दी ही व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। काम की तलाश में वहां लोगों का जमावड़ा बढ़ने लगा। विदेशों से भी कई आप्रवासी वहां बसने लगे। 20वीं सदी के शुरुआती दशकों यानी 1900 से 1920 के दौरान चीन के हक्का समुदाय के लोग कलकत्ता के तांग्रा क्षेत्र में आकर बस गए। धीरे-धीरे वहां एक तरह से मिनी चीन बस गया जिसे स्थानीय लोग “चाइनाटाउन’ के नाम से पुकारने लगे। वहां चाइनीज लोग लेदर का सामान, जूते-चप्पल, सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री इत्यादि बेचते। लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलन में आया उनका चाइनीज फूड।
-
हक्का आप्रवासियों ने अपने चाइनीज फूड में इंडियन इंग्रेडिएंट जैसे पत्ता गोभी, मटर के दाने, गाजर और सिरका व अन्य गरम मसालों को मिलाकर ‘चाऊमीन’ बनाई जिसे कलकत्ता में लोगों ने हाथों-हाथ लिया। चूंकि उन दिनों कलकत्ता में भारत के अलग-अलग हिस्सों से आकर लोग बसे हुए थे। तो यह चाऊमीन जल्दी ही भारत के अन्य इलाकों में भी लोकप्रिय होने लगी और आगे जाकर चाइनीज फूड का पर्याय बन गई।
-
चिकन मंचुरियन का उद्भव मुंबई में हुआ। इसकी कहानी भी कम रोचक नहीं है। चाइनीज मूल के नेलसन वांग मुंबई स्थित क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में कुक थे। बात 1975 की है। एक दिन एक कस्टमर ने उनसे कुछ ऐसा सर्व करने का आग्रह किया जो उनके मेन्यू में न हो। चुनौती बड़ी थी, पर वांग ने एक प्रयोग करने की ठानी। उन्होंने चिकन को चौकोर टुकड़ों में काटा। फिर उन्हें कॉर्न फ्लोर के गीले आटे (बेटर) में डुबोकर डीप फ्राई कर लिया। इसके बाद प्याज, हरी मिर्च, लहसुन, सिरका और सोय सॉस मिलाकर एक खास चटनी बनाई। अब डीप फ्राइड चिकन को उन्होंने इस चटनी में डुबोकर एक पैन में दोबारा से गर्म किया। इसे उन्होंने चावल के साथ परोसा। यह उनके कस्टमर को खूब पसंद आया। वांग ने इसे नाम दिया चिकन मंचुरियन। इसके शाकाहारी संस्करण के रूप में चिकन की जगह गोभी और पनीर का इस्तेमाल कर गोभी मंचुरियन और पनीर मंचुरियन बनाए गए।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Source: Health