अस्थमा में इन्हेलर असर न करने पर कारगर साबित होती रही ब्रॉन्क्रियल थर्मोप्‍लास्‍टी
By : Devadmin -

हेल्थ डेस्क. 56 वर्षीय रूपेश 18 सालों से अस्थमा से पीड़ित थीं। कई सालों से इनहेलर का प्रयोग कर रही थीं, लेकिन इसके बावजूद अस्थमा का अटैक हुआ और तीन बार अस्पताल में भर्ती हुईं। जब सारे इलाज कारगर साबित नहीं हुए तो डॉक्टर ने ‘ब्रॉन्क्रियल थर्मोप्लास्टी (बीटी)’ करवाने की सलाह दी। इलाज के बाद रूपेश ने बताया, ‘मैं पहले दो से तीन सीढ़ियां भी नहीं चढ़ पाती थी और अब मैं अपने बेटे की शादी का सारा काम अकेले ही संभाल रही हूं। ब्रॉन्क्रियल थर्मोप्लास्टी कारगर साबित हो रही है।
1.6 लाख अस्थमा रोगियों पर इन्हेलर बेअसर
रूपेश जैसे लगभग 1.6 लाख अस्थमा रोगियों में अस्थमा के इनहेलर असरदार साबित नहीं हो रहे हैं। इसे ‘गंभीर अस्थमा’ की स्थिति कहा जाता है। इस तरह के मामलों में, अस्थमा का अटैक बार-बार आता है और मरीज को बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है। लगभग 10 प्रतिशत अस्थमा के मरीजों को गंभीर अस्थमा की समस्या होती है और उन्हें दवा आधारित कोर्टिकोस्टेरॉइड से फायदा नहीं मिलता। बायोमेडिकल अध्ययनकर्ताओं ने बार-बार आने वाले अस्थमा के अटैक और अस्पताल के बार-बार लगने वाले चक्करों को कम करने के लिये ब्रॉन्क्रियल थर्मोप्लास्टी विकसित की है।
हर 10 में से इंसान अस्थमा से पीड़ित
दिसंबर 2016 में जारी हुई, विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में 383,000 मौतें अस्थमा की वजह से हुई थीं। हवा की खराब होती गुणवत्ता और प्रदूषण के बढ़ने से, अस्थमा और खांसी के रोगी बढ़ गए हैं। ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में अस्थमा के 2 करोड़ मरीज है, जिनमें हर पांचवा व्यक्ति भारत में रहता है। घरघराहट, खांसी, सांस लेने में परेशानी और सीने में जकड़न जैसे लक्षणों को नियंत्रित रखने के लिये इन लोगों को कोर्टिकोस्टेरॉइड इनहेलर्स पर निर्भर होना पड़ता है। हालांकि, अधिकांश लोगों का अस्थमा नियंत्रण में आ जाता है लेकिन हर दस में एक व्यक्ति का अस्थमा गंभीर अस्थमा होता है। ऐसे रोगियों को इलाज की आवश्यकता होती है।
अस्थमा से दूसरी बीमारियों का बढ़ता है खतरा
जयपुर के अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह कहते हैं, बार-बार अस्थमा का अटैक आने से सांस नली का आकार बदल जाता है। इस स्थिति में सांस नली संकरी हो जाती है, उनमें सूजन आ जाती है और अतिरिक्त मात्रा में म्यूकस बनता है। जिन लोगों का बॉडी मास इंडेक्स ज्यादा होता है, उनमें सामान्य की तुलना में सांस नली में एलर्जन के प्रति संवेदनशीलता ज्यादा होती है, यह भी सांस नली के सिकुड़ने की एक और वजह होती है। गंभीर अस्थमा केवल सांस नली के सिकुड़ने से लेकर उसमें होने वाली सूजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके साथ अन्य समस्याएं भी होती हैं, जैसे स्लीप एप्निया और मोटापा। सांस नली में होने वाले लक्षणों और सूजन की वजह से अत्यधिक बॉडी मास इंडेक्स वाले लोगों को अस्थमा होने का खतरा ज्यादा रहता है।
डॉ. वीरेंद्र सिंह कहते हैं, तंबाकू से होने वाला धुआं, एलर्जी, सांस संबंधी संक्रमण, गंभीर शारीरिक या मानसिक तनाव और पर्यावरणीय ट्रिगर्स, गंभीर अस्थमा होने के कुछ कारण हैं। गंभीर अस्थमा के मरीजों को कई बार दवाओं से फायदा नहीं पहुंचता। इस स्थिति को थैरेपी रेजिस्टेंस कहा जाता है। ऐसे में बीटी’ कारगर साबित हो सकती है।
कैसे काम करती है वीटी
ब्रोन्कोस्कोप की मदद से मरीज की सांस नली में एक पतला कैथेरेटर डाला जाता है, यह एक हीट एनर्जी देने वाला इंस्ट्रूमेंट है। बढ़े हुए कोमल मांसपेशियों को कम करने के लिये, इस कैथेटर को सांस नली के आखिरी छोर तक पहुंचाया जाता है। इस क्षेत्र को धीरे-धीरे गर्म करने और मांसपेशियों को सिकोड़ने के लिये, हर 10 सेकंड के बाद इसे सांस नली से बाहर निकाला जाता है। जब सांस नली चौड़ी होती है तो मरीज के लिए सांस लेना आसान होता है, अस्थमा का असर कम हो जाता है।
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Source: Health